". . . आज़द पूजा की निर्जीव वस्तु नहीं वरन निर्दिष्ट मार्ग पर मज़बूत क़दमों से चलने वाला पथिक है; एक ऐसा सिपाही है जो मौत को सामने खड़ा देख कर भी मुसकरा सकता है, उसे ललकार सकता है। और सबसे बड़ी बात तो यह कि वह एक मनुष्य है जिसमें बड़ा होकर भी बड़प्पन का अहंकार या अभिमान छू तक नहीं गया।" (P-55)
शहीदों को याद कीजिए!
उनके सपनों को याद कीजिये!!
और एक बार फिर शोषण मुक्त समानतावादी समाज को बनाने के लिये
हर अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाइए!!
शहीदों को याद कीजिए!
उनके सपनों को याद कीजिये!!
और एक बार फिर शोषण मुक्त समानतावादी समाज को बनाने के लिये
हर अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाइए!!
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