Tuesday, February 22, 2011
लू सुन की कहानी "एक पागल की डायरी" ("A Mad Man's Dairy" by Lu Xun)
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Lu Xun (लू सुन),
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हल्ला बोल के मित्रों,
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पढ़कर मुझे सिर्फ एक बात का ध्यान आता है कि आपने शायद समाज में फैली अनेक समस्याओं को लेकर कुछ गलत निष्कर्ष निकाल लिया है।
समाज में फैला आतंकवाद, बेरोज़गारी, लूट-मार, अराजकता और भ्रष्टाचार जैसी अनेक समस्याएं किसी धर्म या किसी कौम की देन नहीं हैं, बल्कि ये समाज की उस मानवता विरोधी भौतिक परिस्थियों और यह संपत्ति की उस बेशरम भूख की ईजाद हैं जो कुछ लोगो के व्यक्तिगत फायदे के लिए समाज की मेहनतकश बहुसंख्या को नरक में झोंक कर कुछ मुट्टी भर लोगों के लिए आराम मुहैया करा रहा है।
हमे परलोक के भगवान से ज्यादा इस लोक में इन्सान की चिंता करनी चाहिये, और हम उसके लिए प्रचार करते हैं। हमारा विश्वास है कि जब तक वर्तमान समाज में मेहनत करने वालों का शोषण होता रहेगा तब तक कोई भी प्रचार चाहे वो देश, धर्म और भगवान को लेकर हो या मानवता को लेकर, उसका कोई तात्पर्य नहीं हो सकता।
आज समाज की सबसे पहली आवश्यकता है कि व्यक्ति द्वारा व्यक्ति के शोषण पर आधारित समाज को बदला जाए। दूसरे धर्मों, दूसरी कौमों को किसी समस्या का जिम्मेदार ठहराना, जबकि समाज की सबसे बड़ी मेहनतकश आबादी को न तो कोई देश ही है, और न कोई धर्म, उसकी तो सिर्फ अपनी मेहनत और बाजुओं की ताकत ही उसका देश, भगवान और धर्म सब कुछ है...
आप इस संदर्भ में अपने विचारों को यहाँ बाँट सकते हैं..
और अपने सुझाव दे सकते हैं,
और आगे आ सकते हैं, इस समाज को बदलने के लिए,
इंसानों कि भौतिक मुक्ति के लिए, और मानवता कि प्रगति के लिए।