Sunday, July 15, 2018

लू सुन की कहानी ‘एक पागल की डायरी’ के कुछ पन्ने।

लू सुन की इस कहानी को पढ़ते हुये हम वर्ग समाज में प्रतिस्पर्धा और पूँजी की अन्धी होड़ के बीच आत्म-केन्द्रित समाज में मानवीय संवेदनाओं और इंसान में मनुष्यता की निर्मम हत्या की एक झलक देखते हैं और उसकी बीभत्सतता को महशूस करते हैं, लेकिन अन्त में आशा की एक झलक भी देखते हैं, जिसका अन्त लू सुन इन शब्दों से करते हैं, सम्भव है नई पीढ़ी के छोटे बच्चों ने अभी नर-मांस न खाया हो। इन बच्चों को तो बचा लें!
कहानी के कुछ अंश,
मैं उन लोगों को खूब जानता हूँ। किसी को एकदम मार डालने को ये तैयार नहीं हैं। ऐसा करने का साहस इन लोगों में नहीं है। परिणाम के भय से इनकी जान निकलती है, इसलिये यो लोग षड्यंत्र रचकर जाल बिछा रहे हैं.....।
दूसरों को खा लेने का लालच, परन्तु स्वयं आहार बन जाने का भय। सबको दूसरों पर संदेह है, सब दूसरों से आशंकित हैं।...
यदि इस परस्पर भय से लोगों को मुक्ति मिल सके तो वे निश्शंक होकर काम कर सकते हैं, घूम-फिर सकते हैं, खा-पी सकते हैं। बस, मन से वह एक विचार निकाल देने की जरूरत है। परन्तु लोग यह कर नहीं पाते और बाप-बेटे, पति-पत्नी, भाई-भाई, मित्र, गुरु-शिष्य, एक दूसरे के कट्टर दुश्मन और यहाँ तक कि अपरिचित भी एक दूसरे को खा जाने के षड्यंत्र में शामिल हैं, दूसरों को भी इसमे घसीट रहे हैं और इस चक्कर से निकल जाने को कोई तैयार नहीं।
लोग अपना जीवन सुधारना चाहते थे। इसलिये वे सभ्य बन गए। उनमें मानवता आ गई। परन्तु कुछ लोग अब भी खाये जा रहे हैं – मगरमच्छों की तरह । कहते हैं जीवों का विकास होता है, एक जीव से दूसरा जीव बन जाता है। कुछ जीव विकास करके मछली बन गये हैं, पक्षी बन गये हैं, बंदर बन गये हैं। ऐसे ही इंसान भी बन गया है। परन्तु कुछ जीवों में विकास की इच्छा नहीं होती। उनका विकास वहीं होता, वे सुधरते ही नहीं, रेंगने वालें जानवर ही बने रहते हैं।
भविष्य में दुनिया में आदमखोरी नहीं चल सकेगी। अगर आदमखोरी नहीं छोड़ोगो तो तुम सब खत्म हो जाओगे, एक-दूसरे को खा जाओगे। तुम्हें तुरन्त बदलना होगा ! अपना मन बदलना होगा ! याद रखो, भविष्य में दुनिया में आदमखोरी नहीं चल सकेगी।....
मैं भले ही बेखबर रहा हूँ, मेरे पुरखे चार हजार वर्ष से आदमखोर रहे हैं। मेरे जैसा आदमी किसी सभ्य, वास्तविक मानव को अपना मुंह कैसे दिखा सकता है?
सम्भव है नई पीढ़ी के छोटे बच्चों ने अभी नर-मांस न खाया हो। इन बच्चों को तो बचा लें!

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