पूँजीवादी समाज की संस्क्रति में व्यक्ति, कलाकारों और निरर्थक मनोरंजन के प्रचार और ब्रद्धि पर गोर्की के कुछ शब्द:
"समूचे वातावरण में एक-दूसरे को भक्षण करने की एक अराजक प्रक्रिया निरन्तर लागू है; सभी मनुष्य एक दूसरे के दुश्मन हैं; अपना-अपना पेट भरने की इस गन्दी लड़ाई में भाग लेने वाला हर आदमी सिर्फ अपनी ही सोचता है और अपने चारो ओर संदेह की दृश्टि से देखता है, ताकि पड़ौसी कही उसका गला न धर दबोचे। थकानें वाली इस पाशविक लड़ाई के भंवर में फंसकर बुद्धि की श्रेष्ठतम शक्तियाँ दूसरों से अपनी रक्षा करने मे ही नष्ट हो जाती हैं, मानव अनुभव की वह उपलब्धि जिसे "मैं" कहते हैं, एक अंधेरा तहखाना बन जाती है जिसके अन्दर अनुभव को और अधिक सम्रद्ध न करनें और पुराने अनुभव को तहखाने की दम घोटनेबाली कोठरियों में बन्द रखने की छुद्र प्रवृत्तियाँ हवी रहती हैं। भरे पेट के अलाबा आदमी को और क्या चाहिए? इस लक्ष्य को पाने के लिए मनुष्य अपने उच्चादर्शों से फिसलकर गिर गया है और जख्मी होकर आँखें फाड़े, पीड़ा से चीखता और कराहता नीचे पड़ा है।" (व्यक्तित्व का विघटन, पृष्ट-35, गोर्की)
"हर प्रकार की विचारधाराओं के अनुयायी पैदा हो जाते थे, जिससे लोग इतनी तेजी से परस्पर विरोधी दलों में बँट जाते थे कि आश्चर्य होता था।" . . . "यह प्रक्रिया कमज़ोर और अकेलेपन से त्रस्त बुद्धिजीवी की स्नायविक जल्दबाज़ी को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करती थी, जो अस्तित्व-रक्षा के संघर्ष में जो भी हथियार सामने आ जाय उसे पकड़ लेता था, बिना यह सोचे-समझे कि उसका प्रयोग करने की शक्ति उसमें है या नहीं । नये नये सिद्धान्तों को इतनी जल्दी में अपना लेने के कारण, जिन्हें वे पचा नहीं पाते थे" . . . "आजकल भी ऐसा हो रहा है।" ((व्यक्तित्व का विघटन, पृष्ट-52, गोर्की)
"एक नए किस्म का लेखक पैदा हुआ है --एक पब्लिक मसख़रा, एक विदूषक किस्म का लेखक जो सस्ते मनोरंजन के भूखे फिलिस्टाइन लोगों की विकृत रूचियों को गुदगुदाने का काम करता है।" . . . "कुत्सित रुचि और तुच्छता से किसी व्यक्ति को कितनी सख्त नफरत है, उसके आत्मसम्मान को नापने का यह भी एक मापदण्ड है।" . . "पैगम्बर सब मर चुके, उसकी जगह पर बिदूषक बिराजमान हो गये हैं।" (व्यक्तित्व का विघटन, पृष्ट-72, 73, गोर्की)
"संवेदनशील और प्रतिभावान लोगों को तेजी से विघटित होने वाले परिवेश से उठनेवाली सड़ांध के जहर से नष्ट होते देखकर दुख होता है।" (व्यक्तित्व का विघटन, पृष्ट-88, गोर्की)
"ह्रासग्रस्त यह परिवेश ऐसी महान् और प्रचंड प्रतिभा को प्रस्फुटित होने से रोक देता है, जो दैनंदित जीवन की क्षुद्रताओं से ऊपर उठकर गरुड़-दृश्टि से देश और संसार की बहुविध घटनाओं को देख सके।" (व्यक्तित्व का विघटन, पृष्ट-87, गोर्की)
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In the Words of Maxim Gorky (from “An Appeal to the World” 1919) to stop the degeneration of social values and lead the progress of World:
"The proletariat and the intellectual workers must choose and decide between the defenders of the old order, the representatives of the system of government by the minority over the majority, the old system without a future and the destroyer of all culture, and the foremost initiator of the new ideals and social sentiments who personifies for all workers the ideas of happiness, of free work, and the fraternity of peoples.
when I co-relate these lines to people even now a days (including myself as well), I realize that very true analysis is given by Maxim Gorky.
ReplyDeleteTrue summary of bad effects of Capitalism & we can feel this live on all around..
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