Sunday, December 21, 2014

स्तालिन कालीन सोवियत यूनियन के इतिहास के कुछ तथ्य और नये खुलासों पर एक नज़र

Published in Mazdoor Bigul, January 2015

दुनिया भर के साम्राज्यवादी देशों के आका आधे-अधूरे तथ्यों के माध्यम से स्तालिन-काल में मेहनतकश जनता की संगठित ताकत द्वारा हासिल सफलताओं को बदनाम करने और विभ्रम की स्थिति पैदा करने के हर सम्भव प्रयास करते रहे हैं। लेकिन इस सारे प्रपोगेण्डा के बावजूद 8 मई 2014 में डीफेन्स-वन (http://www.defenseone.com) के एक सर्वे में रूस के 55 फीसदी नौजवानों का मानना था कि वे सोवियत यूनियन का न होना उनके लिये दुर्भाग्य है (देखें - Poll: More Than Half of Russians Want the Soviet Union Back)। समाजवादी निर्माण के उस दौर और उसका नेतृत्व करने वाले सर्वहारा के नेता स्तालिन को समझने के लिये सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर इतिहास के इस काल के अब तक ज्ञात सभी तथ्यों को एक साथ रखकर संजीदगी से नज़र डालने की जरूरत है। (सभी श्रोतों की सूची अंत में देखें)
1.       स्तालिन काल की घटनाओं पर एक नज़र
1917 में अक्टूबर क्रान्ति के बाद सोवियत यूनियन में समाजवादी निर्माण के पहले एतिहासिक प्रयोग के दौरान लेनिन और फिर स्तालिन के नेतृत्व में सर्वहारा की संगठित शक्ति ने प्रतिक्रांतिकारियों द्वारा क्रान्ति का तख्तापलट करने के मंसूबों पर पानी फेरने से लेकर द्वितीय-विश्व युद्ध तक पूरी दुनिया को हिटलर और फासीवाद से मुक्ति दिलाने में अभूतपूर्व सफलता के साथ नेतृत्व किया था। स्तालिन काल में समाजवादी सोवियत यूनियन में जनता के जीवन स्तर में गुणात्मक वृद्धि हुई, बेरोजगारी और गरीबी जैसे पूँजीवादी बीमारियों को जड़ से समाप्त कर कर दिया गया था, महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा किसी भी अन्य पूँजीवादी देश से बेहतर रूप में मिला हुआ था, शिक्षा का समान अधिकार हर व्यक्ति को मिल चुका था और नाममात्र की जनसंख्या अशिक्षित बची थी, औद्योगिक-तकनीकि तथा वैज्ञानिक विकास के क्षेत्र में सोवियत यूनियन अनेक सफलताएँ हासिल कर रहा था। सोवियत यूनियन के समाजवादी प्रयोगों ने पूरी दुनिया की मेहनतकश जनता के सामने यह सिद्ध कर दिया था कि सर्वहारा वर्ग की समाजवादी सत्ता, जो एक वर्गहीन समाज के निर्माण के लिये संघर्षरत है, मानव समाज के विकास में सभी पुराने वर्ग समाजों की तुलना में एक लम्बी अग्रवर्ती छलांग है।
सोवियत यूनियन के बारे में आज कई नये तथ्यों का सामने आ चुका है। अमेरिकी रिसर्चर ग्रोवर फ़र और रूसी अनुसंधानकर्ता यूरी जोखोव जैसे कई इतिहासकारों ने स्तालिन कालीन सोवियत यूनियन के परालेखों (archive) के अध्ययन के आधार पर अनेक सबूतों के साथ खुलासे किये हैं। इन दस्तावेजों के आधार पर उस दौर में हुईं व्यवहारिक गलतियों की प्रष्ठभूमि समझने में मदद मिलती है कि किन परिस्थितियों में पार्टी में मौजूद पूँजीवादी तत्वों के विरुद्ध स्तालिन के नेतृत्व में संघर्ष किया जा रहा था। चूँकी सोवियत यूनियन में पहली बार समाजवादी निर्माण का प्रयोग किया जा रहा था जिसका कोई अनुभव मौजूद नहीं था, ऐसे में उस समय स्तालिन पार्टी में पैदा हो रहे षडयन्त्रकारियों और पूँजीवादी पथगामियों के पैदा होने की विचारधारात्मक जमीन नहीं तलाश सके। स्तालिन ने कुछ उसूली भूलें की और कुछ व्यावहारिक कार्यों के दौरान गलतियाँ हुई, और कुछ गलतियों से बचा जा सकता था। ग्रोवर फर ने उपनी पुस्तक जनवाद के लिये स्तालिन का संघर्ष के दो खण्डों में स्तालिन के दौर में पार्टी के भीतर जो संघर्ष चल रहे थे उनका संदर्भ सहित विवरणों का खुलासा किया है।
1.       1920 में सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस में हारने के बाद कई विरोधी तत्व उस समय नेतृत्व में मौजूद नेताओं की हत्या करने और तख्तापलट की षणयंत्रकारी कोशिशें कर रहे थे। ख्रुश्चेव ने अपने गुप्त भाषण में सारी गलतियों का दोष स्तालिन पर लगाया, लेकिन 1930 से 1938 के बीच सोवियत यूनियन में नेतृत्व को बदनाम करने के लिये जनता के दमन की षणयंत्रकारियों की गतिविधियाँ चल रहीं थीं उनका कहीं जिक्र नहीं किया गया। (बिन्दु 47, 57,जनवाद के लिये स्तालिन का संघर्ष खण्ड-2”, ग्रोवर फर)
2.       दस्ताबेजों में मिले सबूतों के आधार पर ग्रोवर फर ने खुलासा किया है कि द्व्तीय विश्व-युद्ध से पहले 1930 से 1938 के बीच और विश्व युद्ध के बाद अपनी मृत्यु से पहले तक स्तालिन राज्य पर से पार्टी के प्रत्यक्ष नियन्त्रण को समाप्त करने के लिये संघर्ष कर रहे थे। उनका प्रस्ताव था कि नेतृत्व के चुनाव के लिये गुप्त मतदान होना चाहिये, जिससे व्यापक जन-समर्थन वाले नेताओं को नेतृत्व में लाया जा सके। पार्टी में पहले से मौजूद नेतृत्व के उन लोगों के लिये, जो अपने व्यक्तिगत हितो के चलते विशेष-अधिकारों का एक घेरा तैयार कर चुके थे, स्तालिन का यह कदम खतरनाक होता, यही कारण था कि यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। (बिन्दु 113-119, जनवाद के लिये स्तालिन का संघर्ष खण्ड-1”, ग्रोवर फर.)
3.       विश्व युद्ध की समाप्ति के दौर में 1947 में स्तालिन और पोलित-ब्यूरो में उनका समर्थन करने वाले सदस्यों ने पार्टी नेतृत्व में मौजूद विशेषाधिकार प्रप्त लोगों के विरुद्ध संघर्ष करते हुये पार्टी को राज्य के प्रत्यक्ष नियन्त्रण से हटाने और जनवादी चुनावी प्रणाली लागू का प्रस्ताव पुनः रखा था जो लागू नहीं हो सका। 1952 में सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी की 19वी कांग्रेस में अन्तिम बार स्तालिन ने इसका प्रयास किया, लेकिन इस कांग्रेस की रिपोर्ट का कोई जिक्र ख्रुश्चेव ने अपने गुप्त भाषण में नहीं  किया और आज तक यह रिपोर्ट तक प्रकाशित नहीं की गई है। इस कांग्रेस में स्तालिन के भाषण का एक छोटा हिस्सा ही आज तक प्रकाशित किया गया है, जिसके अनुसार स्तालिन पार्टी के पद और संगठनात्मक ढाँचे में बदलाव करना चाहते थे। इन्हीं बदलावों के तहत स्तालिन ने पार्टी के महासचिव का पद समाप्त करने और खुद महासचिव के पद से इस्तीफा देकर 10 पार्टी सचिवों में से एक का हिस्सा बनने का प्रस्ताव रखा था। यदि स्तालिन के प्रस्ताव लागू कर दिये जाते तो उस समय राज्य के नियन्त्रण में मौजूद विशेषाधिकार प्रप्त पूँजीवादी पथगामियों और षडयन्त्रकारियों का सत्ता में रहना मुश्किल हो जाता। (बिन्दु 2,16, 17, 19, 21 ,जनवाद के लिये स्तालिन का संघर्ष खण्ड-2”, ग्रोवर फर)
4.       सोवियत यूनियन के उस पूरे ऐतिहासिक दौर में स्तालिन द्वारा चलाये जा रहे संघर्षों की रोशनी में इन घटनाओं का विश्लेषण तथा सबूतों के आधार पर ग्रोवर फर ने मार्च 1953 में हुई स्तालिन की मृत्यु के बारे में लिखा है, दौरा पड़ने के बाद या तो स्तालिन को उनके दफ्तर में मरने के लिये छोड़ दिया गया था या जहर देकर उनकी हत्या की गई थी। (बिन्दु 43,जनवाद के लिये स्तालिन का संघर्ष खण्ड-2”, ग्रोवर फर)।
5.    स्तालिन की मृत्यु के बाद सोवियत यूनियन का भविष्य पूरी तरह से पार्टी नेतृत्व के हाथों में आ गया। और इसने राज्य और आर्थिक क्षेत्र के सभी पदों पर अपनी इजारेदारी सुनिश्चित कर ली और पूरी तरह से किसी भी पूँजीवादी राज्य की तरह परजीवी के रूप में खुद को सत्ता में स्थापित कर लिया। ख्रुश्चेव, गोर्बाचेव, येल्तसिन से लेकर पुतिन तक यही इजारेदार नेतृत्व आज तक रूस की सत्ता में मौजूद है जिन्होंने लम्बे समय तक अति-विशिष्ट कार्यकर्ताओं के रूप में सोवियत यूनियन की मेहनतकश जनता को निचोड़ा। (बिन्दु 45, 46, वही)
इस पूरे दौर का घटनाक्रम दर्शाता है कि अक्टूबर 1917 में क्रान्ति होने के बाद सोवियत यूनियन में पार्टी के अन्दर विशेषाधिकार प्राप्त पूँजीवादी पथगामी लगातार पैदा हो रहे थे और पहले समाजवादी राज्य की रक्षा में इन भ्रष्ट तत्वों के विरुद्ध स्तालिन के दौर में लगातार संघर्ष चलाया गया। लेकिन संघर्ष के सही विचारधारात्मक स्वरूप का विस्तार न कर पाने के कारण पूरा भरोसा राज्य के पदाधिकारियों पर किया गया और उनकी मदद से सजा देने का काम किया गया जिससे पार्टी में मौजूद षडयन्त्रकारियों को अतिशय रूप से सजा देकर स्तालिन तथा राज्य को बदनाम करने का मौका मिल गया। इन सभी ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर देखें तो पार्टी और दुश्मन तथा जनता के बीच अन्तरविरोधों को हल करने की जो विचारधारात्मक समझ चीनी पार्टी ने महान बहस में प्रस्तुत की वह सही है कि स्तालिन उस दौर में इन अन्तरविरोधों को हल करने की सही लाइन विकसित नहीं कर सके, यह स्तालिन की गलती नहीं बल्कि उस दौर की एक व्यवहारिक सीमा थी।
2.       सोवियत यूनियन की 20वीं पार्टी कांग्रेस (1956) में ख्रुश्चेव के गुप्त भाषण से आरम्भ स्तालिन काल के दौरान हासिल सफलताओं को झूठे तथ्यों के आधार पर बदनाम करने का सिलसिला, जो आज भी जारी है।
स्तालिन काल का मूल्यांकन और उस दैर के बारे में अब जितने खुलासे हुये हैं उनके आधार पर हम ख्रुश्चेव के गुप्त भाषण के पीछे छिपे मूल मकसद को समझ सकते हैं। स्तालिन काल की महान सफलताओं में स्तालिन के नेतृत्व की मान्यता के रहते ख्रुश्चेव के चारो और संगठित हुए विशेषाधिकार प्राप्त भ्रष्ट गुटों और पूँजीवादी पथगामियों के लिये अपनी संशोधनवादी मार्क्सवाद-लेनिनवाद विरोधी नीतियाँ लागू करना सम्भव नहीं होता। ऐसी स्थिति में पार्टी के नेतृत्व पर काबिज इस संशोधनवादी गुट के लिये जरूरी था अपनी सर्वहारा विरोधी सुधारवादी नीतियों पर पर्दा डालने के लिये पहले स्तालिन और स्तालिन के पूरे दौर को बदनाम करता। 1953 में स्तालिन की मृत्यु के बाद ख्रुश्चेव ने 1956 तक सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी के अन्दर इस संशोधनवादी खेमें के समर्थन के आधार का विस्तार किया और 1956 की 20वीं पार्टी कांग्रेस में अपना गुप्त भाषण पढ़ा जिसमें व्यक्ति पूजा समाप्त करने के नाम पर स्तालिन पर अनेक झूठे आरोप लगाये और सोवियत यूनियन के समाजवादी संक्रमण के दैरान हुई सभी गलतियों के लिये स्तालिन को दोषी ठहरा कर उनका पूर्ण निषेध कर दिया ।
अपने भाषण में स्तालिन पर कीचड़ उझाल कर ख्रुश्चेव ने सर्वहारा वर्ग के नेता के रूप में स्तालिन को ही नहीं बल्कि उस पूरे दौर में लागू की गई नीतियों, सर्वहारा अधिनायकत्व और समाजवादी संक्रमण के मूल मार्क्सवादी-लेनिनवादी सिद्धान्त को पूरी दुनिया में बदनाम करने की कोशिश की। जिसने पूरी विश्व के कम्युनिस्ट आन्दोलनों में सैद्धान्तिक स्तर पर एक विभ्रम की स्थिति पैदा कर दी थी। इस वक्तव्य के माध्यम से ख्रुश्चेव ने समाजवाद को बदनाम करने का एक और मौका साम्राज्यवादियों की झोली में डाल दिया।
लेनिन ने अपने दौर में आन्दोलन में मौज़ूद गलत प्रवृत्तियों के प्रति बहसों का हवाला देते हुये कहा था कि कभी-कभी गरुड़ मुर्गियों से नीचे उड़ सकते हैं, लेकिन मुर्गियाँ कभी भी गरुण की ऊँचाई तक नहीं उठ सकतीं। (म.ब., पृष्ठ 93) इस उद्धरण को स्तालिन और ख्रुश्चेव के संदर्भ में आसानी से समझा जा सकता है। चीनी पार्टी ने ख्रुश्चेव द्वारा स्तालिन के पूर्ण निषेध के पीछे मूल कारण के बारे में कहा था, स्तालिन के प्रति इस गाली-गलौज में, ख्रुश्चेव, दरअसल, सोवियत व्यवस्था और राज्य की अन्धाधुन्ध भर्त्सना कर रहे हैं। इस संदर्भ में उनका भाषण काउत्सी, त्रात्स्की, टीटो और जिलास जैसे भगोड़ों की भाषा से किसी भी तरह कमजोर नहीं, बल्कि वास्तव में, उनसे भी तीक्ष्ण है। (म.ब., पृष्ठ 97)
ख्रुश्चेव ने अपने गुप्त वक्तव्य में स्तालिन को हत्यारा, निरंकुश शासक”, "इतिहास का सबसे बड़ा तानाशाह" जैसे संबोनों से नवाजा था और व्यक्ति-पूजा के अनेक आरोप लगाये थे। आज यह पर्दा हट चुका है कि स्तालिन पर ख्रुश्चेव ने अपने गुप्त भाषण में जो भी आरोप लगाये थे सारे झूठ थे। इसका विस्तृत विवरण तथ्यों के साथ ग्रोवर फ़र की पुस्तक ख्रुश्चेव के 61 छूठ में देखा जा सकता है, जो पूरी सोवियत यूनियन के लेखागार के दस्तावेजों में मिले तथ्यों के अध्ययन पर आधारित है।
पूरी दुनिया में आज तक आधुनिक संशोधनवादी, त्रात्स्कीपन्थी, आराजकतावादी ख्रुश्चेव द्वारा तैयार किये गये "स्तालिन की गलतियों" के पर्दे की आड़ लेकर सर्वहारा वर्ग के साथ अपनी गद्दारी को छुपाने का काम कर रहे हैं। सर्वहारा वर्ग के प्रति ख्रुश्चेव की इस गद्दारी के झण्डे को उठाकर पूरी दुनिया के साम्राज्यवादी-पूँजीवादी आज तक कम्युनिस्ट आन्दोलनों को बदनाम करने और पूँजीवादी समाज में दमन-उत्पीड़न से जूझ रही मेहनतकश जनता के बीच समाजवाद के प्रति संदेह पैदा करने के लिये हर संभव कोशिश में लगे हैं, ताकि आने वाले समय में कम्युनिस्ट आन्दोलनों को दिग्भ्रमित किया जा सके और व्यापक मेहनतकश जनता की लूटमार और शोषण पर खड़े अपने स्वर्ग के टापू को उजड़ने से बचाया जा सके।
श्रोत सूची:
1.   महान बहस, पीपुल्स पब्लिसिंग हाउस, अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशन
2.   Documents of Great Debate (3 Volumes), International Publication
3.   Political Economy (Sangai Political Text Book)
4.   Khrushchev Lied by Grover Furr
5.   "Stalin and the Struggle for Democratic Reform, Part 1 and 2” by Grover Furr
6.   Documents of Great Proletarian Cultural Revolutions and Great Leap Forward on http://www.revcom.us
7.   http://www.thisiscommunism.org/
8.   Documents of marxist.org
9.   Reject the Revisionist Theses of the XX Congress of the Communist Party of the Soviet Union and the Anti-Marxist Stand of Krushchev's Group! Uphold Marxism-Leninism!” by Enver Hoxha, Moscow, 16 November, 1960

No comments:

Post a Comment

Popular Posts