"Against every
injustice"
आज-कल सूचना के अनेक माध्यम हमारे सामने हैं और
सभी माध्यमों से हमें लगातार खबरें मिल रही हैं कि पूरी दुनिया के कई हिस्सों में
हिंसा-बमबारी-बलात्कार जैसी अनेक घटनाओं
में मासूम लोगों की हत्याएँ हो रही हैं। कुछ लोग इन नृंशक घटनाओं के बारे में थोड़ा-बहुत सोच भी रहे हैं, लेकिन ज्यादातर लोग इनके बारे में उदासीन
हैं। उनके लिये यह सभी घटनायें मात्र एक खबर से अधिक
महत्व नहीं रखतीं। इसी तरह के कई लोग, जो सिर्फ गप्पबाजी और खोखली बातों के सिवाय
कभी अपने सुविधा के घोसले से एक पैर भी बाहर नहीं
निकालते, सोसल मीडिया पर बिन
माँग सुझाव दे रहे हैं और स्वघोषित उपदेशक बनने का प्रयास कर रहे हैं। इनकी चर्चा आगे करेंगे। ऐसे लोगों के लिये क्या कहा जाये। यह कबूतरों की तरह हैं जो घरों के जंगलों और चारदीवारी
में घोंसले बनाकर रहते हैं, उन्हें क्या पता कि आसमान से दुनिया कैसी दिखती है और
वहां से कितने नये आयामों को देखा जा सकता
है, वे तो इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। कई लोग जो अनजाने में कबूतर बने हुये हैं,
उनके साथ सभी को सहानुभूति रखनी चाहिये और कोशिश करनी चाहिये कि वे चाहरदीवारी से
बाहर निकल कर दुनिया की सच्चाई को देख सकें, लेकिन जान-बूझ कर ऐसा सोचने वालों के
बारे में तो एक ही बात कही जा सकती है कि मूर्खता, संवेदनहीनता और बेशर्मी की भी हद होती है!!
इसी बीच गाजा-पट्टी पर जारी हिंसा की घटनाओं पर खबरें आ रही हैं कि इस्राइली बमबारी में हो रही फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्याओं के विरुद्ध यू.एन. में लाये गये जाँच प्रस्ताव में भारत ने भी ब्रिक्स देशों के साथ इस्राइल के खिलाफ जाँच के समर्थन में वोट किया हैं (देखें - यहाँ)। (इस खबर को सुनकर कई गैर-सेक्युलर लोग अपने पुराने स्टैण्ड पर शर्मिन्दा जरूर हो रहे होंगे!!)
इसी बीच गाजा-पट्टी पर जारी हिंसा की घटनाओं पर खबरें आ रही हैं कि इस्राइली बमबारी में हो रही फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्याओं के विरुद्ध यू.एन. में लाये गये जाँच प्रस्ताव में भारत ने भी ब्रिक्स देशों के साथ इस्राइल के खिलाफ जाँच के समर्थन में वोट किया हैं (देखें - यहाँ)। (इस खबर को सुनकर कई गैर-सेक्युलर लोग अपने पुराने स्टैण्ड पर शर्मिन्दा जरूर हो रहे होंगे!!)
पिछले कुछ दिनों से गाज़ा पट्टी में बच्चों और नागरिकों की बमबारी में
हत्या के खिलाफ लगातार पूरी दुनिया के जनपक्षधर नागरिकों-बुद्धिजीनियों द्वारा प्रदर्शन किये जा रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे
लोग भी हैं जो कोई पुरानी घटना को लेकर दूसरों को "सुझाव" दे रहे हैं कि,
"इन लोगों को देश की इतनी समस्याएँ नहीं दिखतीं, हमें उनपर पहले बोलना चाहिये बाद में दुनिया के
बारे में सोचना चाहिये..."। अब इन कुंएँ के मेंढकों को कौन यह समझाये कि देश के हर कोने में आम जनता की समस्याओं
के प्रति लगातार अनेक विरोध प्रदर्शन हो रहे
हैं, उन्हें इसके बारे में कुछ ख़बर नहीं है तो इसके लिये उन्हें अपनी जानकारी के दायरे और सीमा के बारे में खुद
सोचना चाहिये कि अब तक उनकी आँखें बन्द क्यों हैं? ऐसी सोच रखने वाले लोग पहले देश के बाहर
हो रहे अन्याय से मुँह चुराते हैं, फिर अपने राज्य के बाहर होने वाले अन्याय से भी
जी चुराने लगते हैं, फिर अपने शहर या गाँव के बाहर होने वाले अन्याय से भी यह कह
कर मुँह मोंड़ लेते हैं कि यह उनके घर में थोड़े ही हुआ है, और फिर घर में घुस जाते
हैं!! और अन्त में जब सामाजिक अन्याय का असर ऐसी मानसिकता
वाले लोगों के घरों के अन्दर तक पहुँचने लगता है तब वे खुद शर्म से मुँह छुपाने की
जगह ढूँढ़ते दिखते हैं!!
24 जुलाई की कारपोरेट मीडिया की खबरों के अनुसार इस्राइल के
सैन्य हमलों में पिछले दो दिनों से हर घण्टे एक बच्चा मारा जा रहा है, और अब तक कुल 720 से अधिक मारे जा चुके
हैं जिनमें 150 से ज्यादा मासूम बच्चे और महिलायें तथा निहत्थे नागरिक हैं, जबकि इस्राइल के कुल 27 सैनिक हमलों में
मरे हैं। इन आंकड़ों से कोई भी अन्दाज लगा सकता है कि कौन हत्यायें कर रहा है और
कौन अपना बचाव। क्या इस्राइल इन निहत्थे लोगों से अपना बचाव कर रहा है, या मासूम बच्चों को मार कर हमास का बदला
ले रहा है? सैन्य युद्ध तो हथियारों और सैनिकों या आतंकियों से लड़े
जाते हैं, निहत्थे बच्चों और महिलाओं से तो नहीं। और यदि कोई
बच्चों-महिलाओं की इन हत्याओं का समर्थन करता है तो यह शर्मनाक होगा। लेकिन पूरी
कार्पोरेट मीडिया में ऐसा प्रकट करने की कोशिश की जा रही है कि इस्राइल अपनी “आत्मरक्षा” के लिये बच्चों-महिलाओं की हत्या कर रहा
है!!
इसी के बीच अज-कल महिलाओं के विरुद्ध लगातार हो रही हिंसा की कई घटनाओं और पितृसत्तात्मक
मूल्यों के विरुद्ध देश के कई स्थानों पर लगातार
प्रदर्शन किये जा रहे हैं, और पिछले कई सालों से महिला-विरोधी मानसिकता
के खिलाफ लगातार जनता के बीच से कई लोग खड़े होते रहे हैं, और सांस्कृतिक रूप से पूरे समाज में प्रचार किया जाता रहा है।
अब इन "खोखले" उपदेश देने वाले
लोगों को, जिनमें से कई खुद भी महिलाविरोधी मानसिकता
वाले हैं, उन्हें कैसे समझाया जाये कि वे कितनी अज्ञानता
में जी रहे हैं, कि उन्हें पूरे देश और दुनिया में जो भी प्रगतिशील घटित हो रहा है
उसके बारे में कुछ भी नहीं पता। उनकी
जानकारी का स्रोत तो टीवी और अखबार हैं, जो पैसे वालों के हाथ में उनके हिसाब से
खबरों का प्रसारण करते हैं।
गाजा की घटना पर चुप्पी साधे और दूसरों को उपदेश देने वाले
कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि मुसलमान जेहाद के नाम पर कई देशों में आतंक फैला रहे हैं, या मुसलमानों ने किसी देश में दूसरे धर्म के लोगों के प्रति भी कभी
(यहाँ पर यह लोग तोड़ मरोड़ कर आधे-अधूरे इतिहास का हवाला भी देने की कोशिश करते
हैं!!) हिंसा की थी इसलिये वे विरोध नहीं करेंगे। लेकिन इनके इस तर्क के पीछे सोच क्या है, उसपर हमें सोचने की जरूरत हैं। क्या यह लोग सोचते हैं कि आतंकवादी कुछ लोग या कुछ संगठन नहीं बल्कि पूरी कौम होती है? यदि कोई ऐसा सोचता है तो यह बड़ी ही बर्बर,
गैर-जिम्मेदाराना और असंवेदनशील सोच है जो किसी भी सामाज के लिये बड़ी
खतरनाक है। कोई भी इंसान चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो, यदि वह अपना धर्म और जाति देख कर किसी अन्याय का विरोध करता है तो उसकी
स्थिति बड़ी सोचनीय है, ऐसे विचारों की व्यापक स्तर पर आलोचना की जानी चाहिये। चाहे किसी भी धर्म
या जाति या कौम के विरुद्ध कोई अन्याय कहीं भी हो रहा हो, हर एक व्यक्ति को उसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिये।
यदि एक देश-क्षेत्र या दौर में किसी जाति के कुछ लोग या कुछ संगठन (सत्ता में हों या सत्ता के बाहर) आतंकवाद फैला रहे हैं या रहे थे, तो इसके आधार पर कोई भी इंसाफ़पसन्द व्यक्ति
उसी जाति के मासूम बच्चों और नागरिकों का किसी दूसरे देश, क्षेत्र या दौर में किसी और
जाति के द्वारा किये जा रहे नरसंहार के
विरोध से मना नहीं कर सकता। ऐसी सोच के बारे में राहुल संकृत्यायन के यह शब्द बिल्कुल अनुकूल
हैं कि मजहब तो है सिखाता आपस में बैर करना, और आज-कल कई कूपमण्डूक लोग राहुल इस
कथन को सही सिद्ध करने में काफी सक्रियता से हिस्सा ले रहे हैं!!
इतिहास को देखा जाये तो हर जाति और धर्म में कुछ लोग, कभी
सत्ता में होते हुये तो कभी सत्ता से बाहर रहकर बेगुनाहों को मारते रहे हैं, जिसका सबसे भयानक उदाहरण है नाजी
फासिस्टों द्वारा याहूदियों का नरसंहार। अलग-अलग देशों में भी इसी तरह एक जाति द्वारा
दूसरी जाति के लोगों के खिलाफ धार्मिक-जातीय हिंसात्मक कार्यवाहियाँ की जाती रही हैं, और
आज भी हो रहा है। जातीय या या धार्मिक हिंसा के पीछे मुख्य कारण क्या थे इनके बारे
में विस्तार से समझने की जरूरत हैं, जो इस छोटी टिप्पणी में नहीं दिया जा सकता। यहाँ
हम अपना विषय अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना क्यों जरूरी है तक ही सीमित रखेंगे। इन सभी घटनाओं का
विस्तृत अध्ययन करने के लिये जरूरी है कि इनके
पीछे मौजूद वर्गीय
शक्तियों का विश्लेषम किया जाये और सम्राज्यवादी-पूँजीवादी ताकतों
के मंसूबों और वर्ग
हितों को मेहनतकश जनता के सामने उजागर किया जाये। वर्गों में
बंटे दुनिया में कोई भी
राजनीतिक घटना वर्ग हितों से स्वतन्त्र नहीं हो
सकती।
यह सिर्फ भारत की बात नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया के किसी भी देश में यदि
अल्पसंख्यकों के प्रति धर्म-जाति-सम्प्रदाय के नाम पर हिंसा होती है तो हर जन-पक्षधर इंसान को उसका विरोध
करना चाहिये। मानवीय अधिकारों के समर्थक सभी लोगों को फासिस्टों, सम्राज्यवादी सेनाओं या आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों की धर्म या युद्ध के नाम पर जो हत्याएँ की जा रही हैं उन सभी का हर स्तर पर विरोध करना चाहिये| यह जरूरी है - और इसी कड़ी में गाजा में निर्दोष फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्या का भी विरोध जरूरी है, साथ ही अपने
तात्कालिक समाज की बात करें तो लगातार बढ़ रही महिला विरोधी हिंसा और अपराधों की हर
एक घटना का सड़कों पर विरोध और पितृसत्तात्मक मूल्यों को चुनौती दी जानी चाहिये।
अभी कुछ लोगों ने कश्मीरी पण्डितों या तमिलों के विरुद्ध हुई हिंसा का विरोध करने
का सवाल उठाया था, तो ऐसे लोगों से मेरा कहना यही है कि इसका भी हर सम्भव विरोध जरूरी था और आज
भी है। और इस तरह की घटनाओं में सिर्फ हिन्दुओं
को ही नहीं बल्कि मुसलमानो, सिखों, इसाइयों या याहूदियों सभी को विरोध करने के
लिये आगे आना चाहिये।
किसी भी धर्म की हर ऐसी कट्टरपन्थी-मानवद्वेशी ताकतों का विरोध किया जाना चाहिये जो लोगों को
आपस में जाति या धर्म के नाम पर बाँट कर पूँजीवीवादी-सम्राज्यवादी लूट के प्रति लोगों को
उदासीन बनाने का काम करती हैं। फिर चाहे वह महिलाओं के प्रति पुरुषवादी
नजरिये तथा आपराधिक गतिविधियों के तहत होने वाली हिंसा हो, गाजा में मासूम लोगों की बमबारी में हो
रही हत्या हो, शिया-सुन्नी के नाम पर आतंकवादियों
द्वारा धर्म के नाम पर की जाने वाली हिंसा हो, या किसी भी देश तथा क्षेत्र में
अल्पसंख्यकों के प्रति
बहुसंख्यकों द्वारा होने वाला अन्याय हो। हर स्थिति में सही स्टैण्ड यही है कि बेगुनाह लोगों के प्रति होने वाली हर
प्रकार की हिंसा का खुला विरोध किया जाये चाहे वह किसी भी देश, जाति, धर्म या समुदाय के प्रति हो। इसके लिये लोगों को धर्मों-जातियों से
ऊपर उठकर एक वर्ग भावना के साथ हर सामाजिक अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाजें उठानी होंगी।
कुछ स्रोत –
1. India Backs Anti-Israel Vote: Can't Support Violation of
International Norms, Say Sources
All India | Edited by Deepshikha Ghosh |
Updated: July 24, 2014 11:03 IST
2. Israel bans radio advert listing names of children killed
in Gaza
Human rights group
B'Tselem will petition Israel's supreme court after advert was deemed to be
'politically controversial'
3. Scientists, doctors write an open letter condemning
violence in Gaza
“Israel’s behaviour has insulted our humanity,
intelligence, and dignity as well as our professional ethics and efforts. Even
those of us who want to go and help are unable to reach Gaza due to the
blockade. This “defensive aggression” of unlimited duration, extent, and
intensity must be stopped.”
“We are appalled by the military onslaught on
civilians in Gaza under the guise of punishing terrorists. This is the third
large scale military assault on Gaza since 2008. Each time the death toll is
borne mainly by innocent people in Gaza, especially women and children under
the unacceptable pretext of Israel eradicating political parties and resistance
to the occupation and siege they impose.”
4. Stephen Hawking joins academic boycott of Israel
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