केजरीवाल ने कहा है कि वह पूँजीवाद के खिलाफ बिल्कुल नहीं हैं, सिर्फ
"क्रोनी" पूँजीवाद के खिलाफ हैं। लेकिन चाहे क्रोनी पूँजीवाद हो या
स्वतंत्र प्रतियोगिता वाला “भला” पूँजीवाद, दोनों ही स्थिति में शोषण हमेशा मज़दूरों
को ही झेलना पड़ेगा, जो देश की सबसे
व्यापक आबादी हैं।
केजरीवाल
ने कहा है, "he is 'not against
capitalism but against crony capitalism.'" he want to govern to
"providing security, justice and a corruption-free administration."
further he says, "policies have to be made on a proactive basis that
encourage, rather than discourage business" [http://zeenews.india.com/news/nation/aap-against-crony-capitalism-says-arvind-kejriwal-at-cii_912057.html]
केजरीवाल की बात माने तो,
अगर एक सिपाही जो 100 रुपया घूस माँगता है
(जो उसकी बिना काम की कमाई होगी) तो वह भ्रष्ट है, लेकिन अगर कोई
पूँजीपति अपनी पूँजी लगाकर "ईमानदारी" से अनेक मज़दूरों की मेहनत पर खुद
बिना कोई काम किये अरबों रूपया कमाता है,
तो यह भ्रष्टाचार नहीं है। ऐसा लगता है
कि केजरीवाल पूँजी को काफी अहमियत देते हैं,
और पूँजी के सामने मेहनत को बहुत ही
तुच्छ समझते हैं!
केजरीवाल
की माने तो मुनाफा केन्द्रित उत्पादन सम्बन्धों पर खड़ी पूँजीवादी
व्यवस्था के अलावा और कोई विकल्प हमारे सामने नहीं है?? यानि पूँजीवाद ही
आर्थिक-सामाजिक (अ)व्यवस्था का अंतिम सत्य है,
इसके सिवाय और कोई विकल्प नहीं
हो सकता??? यानि, आने वाली सभी पीड़ियों में पूँजीवादी उत्पादन सम्बन्धों पर
आधारित समाज ही रहेगा, जहाँ कुछ लोग अपने मुनाफे के लिये दूसरों से काम
करबाके उनका शोषण करते रहेंगे...
ऐसे
में पूँजी लगाकर काम किये बिना अरबों की सम्पत्ति कमाने और दूसरों की
मेहनत पर अय्याशी करने वाले सभी देशी-विदेशी बैंकर-उद्योगपति-ठेकेदार
केजरीवाल का शुक्रिया किये बिना नहीं रह रहे होंगे। क्योकि काम करने वाली
आम जनता को पूँजीवाद के बारे में भ्रमित करने का इससे (केजरीवाल के भले
रूप से) बेहतर माध्यम और कोई नहीं हो सकता था।
अब
बीजेपी और कांग्रेस की नीतियों और श्री केजरीवाल की नीतियों मे किस आधार पर अन्तर
किया जाए ? ?
कोई नवउदारवादी नीतियों को लागू करने की बात करता है, और कोई स्वतन्त्र पूँजीवाद की बात करता है,
और दोनों ही मेहनत करने वाले लोगों को
भ्रमित करके पूँजीवाद को मैनेज करने का काम करते हैं। लेकिन पूँजीवाद
के विकल्प की बात कोई गलती से भी नहीं करता,
न ही मेहनत करने वालों के शोषण को रोकने
की कोई बात करता है, ज्यादा से ज्यादा खैरात बाँटने के बायदे कर देते हैं...
यही
है श्री केजरीवाल का “स्वराज” और “जनता का राज”??
एक
बहुत पुरानी कहावत है कि बगुला अगर हंस बनने की कोशिश करे तो ज्यादा दिन छुपा नहीं
रह सकता, उसकी सच्चाई सामने आ ही जाती है.
अन्दर
से तो सारे एक जैसे ही हैं.
Manү thanks for spreading your excellent wisdo
ReplyDeleteon this kind of forbidden issue.
Ңere is my ԝeƄ-site: cheap E-liquid