by पाब्लो नेरूदा
मैं यहाँ बिल्कुल किनारे आकर खड़ा हूँ
जहाँ और कुछ कहने के लिए है ही
नहीं
सबको जलवायु और समुद्र ने सोख लिया है
और चाँद तैरता हुआ चला जा रहा है
नेपथ्य में
किरणों की माला नहीं
चाँदी-सी उजली है
सिर्फ़ चाँदी-सी
यह
रात
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अँधेरा चूर-चूर हो जाएगा
मात्र एक लहर की चोट से
डैने खुल जाएँगे
एक आग पैदा होगी
और सब कुछ भोर की तरह
फिर से नीला हो जाएगा
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Taken From KavitaKosh
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