आज सुबह अन्ना हजारे के गिरफ्तार
होने के बाद पूरी मीडिया और अखबारों में बयान आ रहे थे कि सरकार जनवादी अधिकारों और
स्वतंत्रता का हनन कर रही है । आज भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस पूरे आन्दोलन का
नेतृत्व कर रहे अन्ना हजारे, जो अब तक सिर्फ भ्रष्टाचार को हर समस्या का आधार बता
रहे थे, और जनता को विश्वास दिला रहे थे कि भ्रष्टाचार समाप्त होने के साथ ही सभी
समस्याएँ भी दूर हो जाएँगी। लेकिन आज, जब अन्ना हजारे गिरफ्तार हुए तो सारा कार्य "संवैधानिक" तरीके से किया गया । भले
ही बाद में उन्हें रिहा कर दिया जाये, फिर भी गिरफ्तारी संविधान के कानूनो के
दायरे में ही हुई है । सरकार ने उनके आन्दोलन को सुरक्षा व्यवस्था के लिये खतरा
बताकर जेपी पर्क में धारा 144 लगाई, और सुबह उन्हें जाते समय गिरफ्तार कर लिया ।
इस पूरी घटना में, जिसे जनवादी अधिकारो का हनन कहा जा रहा है, "भ्रष्टाचार" का कोई हाथ नहीं है, और सरकार
हर चीज़ संविधान के कानूनों के अनुसार कर रही है । (Reference: NDTV
India)
"सभ्य-समाज" (सिविल
सोसाइटी) को साधारण जनता का मसीहा बनानें में लगे अन्ना जी, जो खुद भी "सभ्य-समाज"
के एक प्रतिनिधि हैं, उन्हें और उनके जैसे अनेक "सभ्य-समाज" के लोगों को
यह समझनें में काफी समय लग गया (ज़रूरी नहीं कि समझ ही गये हों, लेकिन हम मान लेते
है!!) कि पूँजावादी जनवाद में शासक
वर्ग हर समय जनता की स्वतंत्रता का हनन करता है । "सभ्य-समाज" के लोगों
को यह बात कभी-कभी सिर्फ तब समझ में आती है जब मज़बूरी में राज्य़ सत्ता को उनके ऊपर
थोड़ा सा बल प्रयोग करना पड़ता है ।
लेकिन, अन्ना हजारे जैसे "सभ्य-समाज"
के लोग एक गरीब मज़दूर या किसान की स्वतंत्रता की सच्चाई को कभी नहीं समझ सकते,
जिसका पूँजीवाद में एक गरीब व्यक्ति के लिये कोई मतलब नहीं है। जहाँ एक गरीब मज़दूर की स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों का हनन उसकी
फ़ैक्टरी का एक सुपरवाइजर भी उसे गालियाँ देते हुए, उसपर भौतिक एवं मानशिक रूप से
हिंसा करते हुये, हर दिन करता है। और एक गरीब
व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके जनवादी अधिकार तो एक छुटभैया पुलिस के सिपाही के
डंडे के सामने भी कोई मायने नहीं रखते। और यह सब भ्रष्टाचार के कारण
नहीं बल्कि असमानता और शोषण पर आधारित समाज के भीतर सम्पत्ति के आधार पर होता है। जिसे व्यापक जनता को शिक्षित, आन्दोलिद और जन पहलतदमी पैदा किये बिना लागू नहीं किया जा सकता।
अन्ना हजारे जी शायद अब स्वतंत्रता
की इस सच्चाई को समझ सकेंगे, लेकिन उन्हें और उनके जैसे "सभ्य-समाज" के अन्य लोगों को यह
समझनें में काफी समय लगता है, और ज्यादातर तो अपने पूरे जीवन भर में यह नहीं समझ
पाते, क्योंकि उन्हें कभी ऐसी अमानवीय परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता । लेकिन गरीब लोग (मज़दूर,
किसान और बेरोजगार जनता), जिनकी स्वतंत्रता का रोज अनेक प्रकार से हनन होता है,
उन्हे इसका अहसास व्यवहारिक जीवन में रोज होता है, जिसका एक बहुत ही छोटा सा नगण्य
अहसास शायद अन्ना जी को आज सुबह हुआ होगा । लेकिन इन गरीब लोगों के पास न तो
मीडिया का समर्थन है, और न ही "सभ्य-समाज" उनके साथ है, और उनकी हर आवाज़
को बिना किसी को पता चले दबा दिया जाता है। आन्ना हजारे के साथ तो हजारों लाखों
की संख्या में जनता है, और पूरा पूँजीवादी मीडिया उनका साथ दे रहा है, लेकिन, एक
व्यक्ति, यदि उसके पास पैसा न हो, तो उस अकेले व्यक्ति की स्वतंत्रता का अन्दाजा
आसानी से लगाया जा सकता है।
मैं इन्तजार कर रहा हूँ कि,
कब "सभ्य-समाज" के लोगों को
पूँजीवाद की इस सच्चाई का पता लगेगा और अन्ना हजारे कहेंगे कि पूँजीवादी जनतंत्र सम्पत्तिधारी
वर्ग की तानाशाही होता है, जहाँ आम-जनता की स्वतंत्रता सिर्फ सम्पत्ति से
निर्धारित होती है ।
[नोट: अभी ताजी खबर मिल
रही है कि अन्ना को रिहा किया जा रहा है, और सरकार से बातचीत के बाद उनके रवैये
में नरमी भी आई है!! (Reference: NDTV )]
मै भी आज सुबह ये ही सोच रहा था और आपने बिलकुल सत्य कहा है की समस्या केवल भ्रष्टाचार नहीं है. समस्या है ये प्रणाली जो जनतंत्र का चोला ओढ़ कर जीवन मूल्यों का हनन कर, अपनी पूँजीवादी नीती को अंजाम दे रही है.
ReplyDeleteI am just waiting to get a comment from Anna Ji.
ReplyDeleteIf its Jan Lok Pal Bill is able to stop today's act by Delhi Police ?
Is this a democracy ?
Why media is giving huge coverage to this ?