यूँ तो पूँजीवादी अर्थव्यस्था में पूरा काला धन सफेद हो जाये तब भी समाज की मेहनत-मज़दूरी करने वाली आबादी का भविष्य अन्धकारमय बना रहेगा, उसे रोज़गार की गारण्टी नहीं मिल सकती और जहाँ रोज़गार मिला भी है उसकी स्थिति ऐसी होगी जो एक दिहाड़ी गुलाम से अधिक नहीं होगी, जो एक मुनाफ़ा पैदा करने की एक मशीन से अधिक महत्व नहीं रखता, जैसा कि अभी हो रहा है। काम करने वाले मज़दूर अगर लाइन मे धक्के खाकर नहीं तो फैक्टरियों में जानवारों जैसी बदतर हालत में लगे रहते है।
नोटबन्दी के बाद टीवी और अख़बारों को देख कर कुछ लोग सोच रहे थे कि सारे अपराधी बर्बाद हो जायेंगे, काला धन रखने वाले सारे मुनाफ़ाखोर तबाह हो जायेंगे, आतंकवादियों को मिलने वाले काले धन को स्रोतो पर रोक लग जायेगी, और भ्रष्टाचार करने वालों के बीच खौफ फैल जायेगा, और 50 दिन के अन्दर जनता का रामराज्य आने वाला है। ऐसा सोचने वाले कई लोगों को 28 नबम्बर को एक सदमा तो लगा ही होगा।
देश की करोड़ों जनता को बैंकों के सामने भिखारी बनाने के बाद अब काले धन को सफेद करने के लिये एक डिटर्जेंट लोकसभा में पारित कर दिया गया है। सड़कों पर जनता की बर्बादी का हवाला देने वाली नौटंकीबाज़ बिरोधी पार्टियाँ भी इस बिल पर कुछ नहीं बोलीं, और सबकी सहमति से बिल पास हो गया। कर संशोधन विधेयक के बाद अब काले धन में सरकार और भ्रष्टाचारियों के बीच 50-50 का हिस्सा हो गया और काले धन के साथ-साथ इन अपराधियों के सारे अपराध भी साफ सफेद हो गये। हमें सोचना चाहिये कि क्या यही है उनके सपनों का भारत, जहाँ अपराधियों के पास जमा सम्पत्ति को 50-50 करने के लिये आनन-फानन में एक बिल पास कर दिया जाता है, और आम जनता को उसके खुद के पैसे निकालने के लिये सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया जाता है।
व्यवस्था के चरित्र के आधार पर हमारा आकलन तो पहले से यही था, लेकिन सरकार के ऊपर अन्ध-श्रद्धा रखने वाले या प्रचार मीडिया के बहकावे में आकर कुतर्क करने वाले कुछ अन्ध-भक्तों को भी अब समझ में आ गया होगा कि नोटबन्दी के पीछे वास्तव में सरकार की नीयत क्या है। लूट और शोषण पर टिकी व्यवस्था के संयोजक कितनी चालाकी से जनता को गुमराह करते हैं यह अब खुल के सामने आ रहा है।
(सारे तथ्यों के साथ आगे एक और लेख डालूँगा तब तक सभी लोग अपनी अपनी राय दें...)
नोटबन्दी के बाद टीवी और अख़बारों को देख कर कुछ लोग सोच रहे थे कि सारे अपराधी बर्बाद हो जायेंगे, काला धन रखने वाले सारे मुनाफ़ाखोर तबाह हो जायेंगे, आतंकवादियों को मिलने वाले काले धन को स्रोतो पर रोक लग जायेगी, और भ्रष्टाचार करने वालों के बीच खौफ फैल जायेगा, और 50 दिन के अन्दर जनता का रामराज्य आने वाला है। ऐसा सोचने वाले कई लोगों को 28 नबम्बर को एक सदमा तो लगा ही होगा।
देश की करोड़ों जनता को बैंकों के सामने भिखारी बनाने के बाद अब काले धन को सफेद करने के लिये एक डिटर्जेंट लोकसभा में पारित कर दिया गया है। सड़कों पर जनता की बर्बादी का हवाला देने वाली नौटंकीबाज़ बिरोधी पार्टियाँ भी इस बिल पर कुछ नहीं बोलीं, और सबकी सहमति से बिल पास हो गया। कर संशोधन विधेयक के बाद अब काले धन में सरकार और भ्रष्टाचारियों के बीच 50-50 का हिस्सा हो गया और काले धन के साथ-साथ इन अपराधियों के सारे अपराध भी साफ सफेद हो गये। हमें सोचना चाहिये कि क्या यही है उनके सपनों का भारत, जहाँ अपराधियों के पास जमा सम्पत्ति को 50-50 करने के लिये आनन-फानन में एक बिल पास कर दिया जाता है, और आम जनता को उसके खुद के पैसे निकालने के लिये सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया जाता है।
व्यवस्था के चरित्र के आधार पर हमारा आकलन तो पहले से यही था, लेकिन सरकार के ऊपर अन्ध-श्रद्धा रखने वाले या प्रचार मीडिया के बहकावे में आकर कुतर्क करने वाले कुछ अन्ध-भक्तों को भी अब समझ में आ गया होगा कि नोटबन्दी के पीछे वास्तव में सरकार की नीयत क्या है। लूट और शोषण पर टिकी व्यवस्था के संयोजक कितनी चालाकी से जनता को गुमराह करते हैं यह अब खुल के सामने आ रहा है।
(सारे तथ्यों के साथ आगे एक और लेख डालूँगा तब तक सभी लोग अपनी अपनी राय दें...)
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