चार्नेशेवेश्की (Chernyshevsky) के कुछ विचार, उपन्यास "क्या करें" से,
"वह ऐसी लक्षणिक स्थिति में
पहुँच चुका था, जिसका सामना न किसी ढुलमुल को ही करना पड़ता है, बल्कि पूर्ण रूप
से उन्मुक्त भावना वाले या पूरे के पूरे राष्ट्रों को अपने इतिहाश के दौरान करना
पड़ता है। . . . . . . लोग एक ही दिशा में केवल इसलिए धक्कामुक्की करते हैं, क्योंकि
उन्हें कोई ऐसी आवाज सुनाई नहीं पड़ती जो कहे - "अरे किसी दूसरे रास्ते जाने
की कोशिश क्यों नहीं करते तुम ?" यह इशारा समझते ही पूरी की पूरी जनता पलट जाती है और
विपरीत दिशा की और चल पड़ती है।"
"वह अपने साधारण जीवन से ही
सन्तोष कर लेती और अर्थहीन आस्तित्व का जीवन जीने लगती । ऐसा समय भी था जब विलक्षण
युवतियों और विलक्षण युवकों का भविष्य यही था -वे सब अच्छे-भले
बुजुर्गों में बदल जाते थे और व्यर्थ ही अपना जीवन जीते थे। कभी दुनिया की
ऐसी ही रीति थी, तब ऐसे भले लोग कम थे, जो इसे बदलने की सोचते। कोई भी
मनुष्य अपने आस्तित्व को कुंठित किए बिना अकेला नहीं रह सकता। या तो निर्जीव बन
जाओ अथवा नीचता से समझौता कर लो।" . . . "इन दिनो तीसरा विकल्प जोर
पकड़ रहा है -शालीन लोग एकजुट होने लगे हैं, प्रतिवर्ष उनकी बढ़ती हुई
संख्या को देखते हुए यह अपरिहार्य ही है। समय आएगा जब यह सामान्य रीति हो जाएगा,
और समय बीत जाने पर यह नियम सार्वजनिक हो जाएगा, क्योंकि तब केवल शालीन लोग ही
होंगे।"
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