""लोगों की आम भलाई करने की यह क्षमता, जिससे वह अपने को पूरी तरह वंचित अनुभव करता था, शायद गुण नहीं, बल्कि इसके विपरीत किसी चीज की कमी है -- नेकी, ईमानदारी, सद्भावनापूर्ण इच्छाओं तथा रूचियों की कमीं नहीं, बल्कि जीवन-शक्ति की कमीं, उस चीज की कमीं है, जिसे दिल कहते हैं, उस उत्प्रेरणा की कमीं है, जो आदमी को उसके सामने प्रस्तुत अपने जीवन-पथों में से एक को चुनने और उसी को चाहने के लिए विवश करती है। उसने इस बात को समझा कि आम भलाई का काम करने वाले, दूसरे बहुत से कार्यकर्ता भी इस सर्वकल्याण के प्यार की ओर दिल से नहीं खिंचे थे, बल्कि दिमाग़ी तर्क-वितर्क से एसा करना अच्छा समझते थे और केवल इसीलिए ऐसा करते थे। इस बात के अवलोकन से उसे इस अनुमान की और अधिक पुष्टि हो गई कि ये लोग सर्वकल्याण तथा आत्मा की अमरता के प्रश्न को शतरंज की एक बाज़ी या किसी नई मशीन की बहुत सुन्दर बनावट से अधिर महत्व नहीं देते. . ."
[पृ. - 246.4, तोलस्ताँय (Leo Tolstoy)
के उपन्यास अन्ना करेनीना (Anna Karenina) से]
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