कल (1 मई 2011) जन्तर-मन्जर पर हजारों मजदूर भारत के मजदूरों के माँगपत्रक को सरकार
के सामनें रखनें के लिये अलग-अलग जगहों से आये हुये थे। लेकिन इस पूरी घटना के बारे
में पूरी पूँजीवादी मीडिया, जो अनेक छोटे-छोटे आन्दोलनों के प्रचार में लगा रहता,
और बेचनें के लियें मजदूरो की जिन्दगी पर फिल्में भी बना लेता है, उसनें मजदूरों
की माँगो का एक बार भी प्रचार नहीं किया। कर भी कैसे सकता था? जिन पूँजीपतियों से करोंड़ो रुपये लेकर ये पूरा
मीडिया चल रहा है वो मजदूरों की उन माँगों का प्रचार कैसे कर सकता है जो सीधे उनके
मालिको द्वारा मजदूरों का खुलेआम शोषण करके अपना घर भरने के विरुद्ध हो? जो पूँजीपति मजदूरों की मेहनत से पैदा होने वाले
पैसो को लूटकर इन लोगों के सामने फेक देते हैं, उनका विरोध यह लोग कैसे कर सकते
हैं, चाहे मजदूरो के साथ किसी भी हद तक गलत हो रहा हो।
इस सब
के बाबजूद अपनी माँगों को संसद के सामनें रखनें के लिये मजदूर देश के अलग-अलग
कोनों से हजारों की संख्या (आठ हजार) में जन्तर-मन्तर पर पहुँचे । आन्दोलन में शामिल
हुये कुछ मजदूरों से बात करके पता चला कि वो लोग गोरखपुर और लुधियाना से दिहाड़ी
पूरी करके घर से निकले थे और रविवार की शाम को ट्रेन से सीधे सुबह काम करने फैक्ट्री
जायेंगे जिनमें से कुछ मजदूर अपनें मालिको से लड़-झगड़ कर छुट्टी लेकर आये थे। ये
उन सभी मजदूरों की वर्ग की माँगों की एकता, और आने वाले समय में, आने वाली पीड़िओं
के लिये एक बेहतर भविष्य का सपना ही तो है जो उन्हें इतनी परेशानियों में भी
संघर्ष करने के लिये जुझारू जोश और हौसला देता है । ये मजदूर वो है, जिन्हें
सम्बोधित करने वाले एक कार्यकर्ता के शब्दों में, “पूरी साल के 365 दिन मालिक के
मुनाफे के लिये 12-12 से 16-16 घन्टे तक जी तोड़ मेहनत करते है।”, और अगर मालिक के लिये ये लोग 365 दिन अपनी
हड्डियाँ गला सकते हैं तो, “क्या एक दिन अपने लिये थोड़ी
सी मुसीबत नहीं सहन कर सकते...।”
सभा में मौजूद मजदूरों नें, जो अपनी बाजुओं
के दम पर पूरा देश खड़ा करते हैं, एक संकल्प लिया कि एकजुट होकर लूटमार,
भ्रष्टाचार और शोषण पर खड़ी पूरी पूँजीवादी व्यवस्था की नीव को ढहाकर आने वाले समय
में उसकी जगह पर एक नई समाजवादी व्यवस्था (जैसा कि आज सिर्फ संविधान में लिखा है: “प्रभुसत्ता
सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक
गणतंत्र”) बनानी है जो सही
मायनें में मेहनतकश जनता की व्यवस्था होगी ।
दुनिया के मजदूरों एक हो.
ReplyDeleteमजदूर दिवस जिन्दाबाद...
क्या हिन्दी चिट्ठाकार अंग्रेजी में स्वयं को ज्यादा सहज महसूस कर रहे हैं ?
ReplyDeleteदिल्ली में मई दिवस की रैली में भाग लेकर लौटे मज़दूरों पर बौखलाये मालिकों ने करवाया हमला :: 20 मजदूर गंभीर रूप से घायल [Click on Link for Detail]
Appeal to all to raise voice against cowardly criminal act by Factory owner and rented criminals together with some corrupt state officials.