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प्रकाश मिलने पर स्वभावतः लोगों को
अँधेरे की स्थिति, दुःख
मालूम हो जाते हैं, और
उनका पहला वह भय दूर हो जाता है। दबे हुए
जो होते हैं, दबना
उनका स्वभाव बन जाता है। और जब न दबने वाली प्रवृत्ति बढ़ती
है, तब
दबानेवाली वृत्ति भी अपनी उसी शक्ति से बढ़ती रहती है। फिर जिसमें
शक्ति अधिक हुई, उसकी
विजय हुई।
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कितने कष्ट हैं यहाँ, कितनी कमजोरियों से भरा हुआ संसार है
यह, पद-पद पर कितनी ढोकरें लग
चुकी हैं, पर
सब लोग फिर भी समझते हैं - वे अक्षत हैं, वे ऐसे
ही रहेंगे; तभी
पूरी प्रसन्नता से हँसते हैं। बर्षा की बाढ़ की तरह कितने प्रकार के दुःख-कष्ट उन्हें
उच्छ्वासित कर, डुबा-डुबाकर
चले गए, पर दुःख जल से हटने
के बाद कुछ ही दिनों में सूखकर फिर वैसे ही ठनकने लगे। इन लोगों के
प्रमाद-स्वर में तन, मन
और धन की ही गुलामी के तार बज रहे थे। बाते ईश्वर की करते हैं, पर ध्वनि संसार की होती है कि बह बड़े
मौज में हैं - ईश्वर
की बातचीत खाते-पीते हुए सुखी मनुष्यों का प्रलाप है।
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जो गिरना नहीं चाहता, उसे कोई गिरा नहीं
सकता; बल्कि
गिराने के प्रयत्न से उसे और बल देना होता है।
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संसार की प्रति प्रगति की सुलोचना स्त्री ही
की नियामिका है, क्या
एक बाजू कतर देने
पर चिड़िया उड़ सकती है? स्त्रियों
की दशा क्या ऐसी ही नहीं कर रखी यहाँ के कल्मष में डूबे, धर्म को ठेका कर रखनेवाले लोगों ने?
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साधु (गुरुओं, बाबाओं, या मंदिर में भी) के पास प्रणाम करने के लिए जो जाएगा, वह जरूर पापी होगा;
उसके एक या अनेक कृत पापों के स्मरण से जब उसे चैन नहीं पड़ता, तब वह साधु की तरफ दौड़ता है कि प्रणाम
करके अपने आपका बोझ दूसरे
पर लाद दे।