"क्रांति से हमारा अभिप्रय है —अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज व्यवस्था में आमूल परिवर्तन।".. "जहाँ मनुष्य द्वारा मनुष्य का तथा एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण, समाप्त कर दिया जाये"
- भगत सिंंह (पूरा लेख यहाँ पढ़े)
आज क्रान्तिकारियों के शहादत दिवस पर हर एक नौजवान को
संजीदगी के साथ यह समझना चाहिये कि इन क्रान्तिकियों ने देश के लिये अपनी कुर्बानी
क्यों दी और वास्तव में आज़ादी का क्या अर्थ होता।
हाल ही में एक किताब को पढ़ने का मौका मिला, जिसका
नाम है “साहिब
का भारत” और लेखक हैं प्राण नेविल (Sahib’s India By Pran Nevile)। इसे पढ़ते समय हमें ब्रिटिश काल में देश में मौजूद असमानता और आम
भारतीय लोगों की सामाजिक स्थिति और उनपर किये जाने वाले अत्याचारों की एक हल्की
झलक मिलती है। ब्रिटिश
राज में अंग्रेज और
उनकी मुमाइंदगी करने वाले भारतीय, देश की आम जनता के साथ कैसा व्यवहार करते थे, और
अपनी अय्याश जीवन-शैली के लिये किस तरह उनका शोषण करते थे जिसका कुछ वर्णन इस
किताब में मिलता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि उपनिवेशवाद और सामंतवाद के उस
दौर में देश की सत्ता पर काबिज अंग्रेजों और उनका साथ देने वाले सामंतो द्वारा भारत
के मेहनतकश लोगों पर जो भी अत्याचार किये जाते थे वे सभी औपनिवेशिक और सामंती कानूनो
के दायरे में अपराध नहीं माने जाते थे। इसका मुख्य कारण था कि इसे बनाने वाले वही
लोग थो जो जनता का शोषण करते थे और खुद सत्ता पर काबिज थे। इस किताब में वर्णित
अंग्रेज साहबों की अश्लील अय्याशी के दृश्यचित्र आपको यह सोचने के लिये मज़बूर कर
देते हैं कि बहुसंख्यक आबादी के शोषण पर खड़ी व्यवस्था में कानूनो का वास्तविक
मकसद सत्ता मे काबिज कुछ मुठ्ठीभर लोगों के विशेषाधिकारों की रक्षा करना होता है।
इन अंग्रेज साहबों के बारे में पढ़ते समय अनायास ही
देश की उद्योगपतियों के बयान हमारी नज़रों को सामने तैरने लगते हैं जो अपने मज़दूरों
से 90 घण्टे काम करवाने का सपना
देख रहे हैं, ताकि अपनी अय्याशी के लिये और ज़्यादा सम्पत्ति जमा कर सकें। यह अनायास
ही नहीं होगा यदि आने वाले दौर में देश की चुनी हुई सरकार श्रम कानूनों में बदलाव
करके 90 घण्टे काम को भी वैद्धता प्रदान कर दे। आखिरकार सरकार किसका प्रतिनिधित्व
करती है। कानून कौन बना रहा है और किसके लिये बनाये जा रहे हैं यह इस बात पर निर्भर
करता है कि जनप्रतिनिधि किसकी नुमाइंदगी करते हैं। आज सत्ता पर काबिज लोग,वे किसके प्रतिनिधि हैं इसका अंदाज़ लगाने के लिये कोई कठिन प्रयास करने की
ज़रूरत नहीं हैं।
यदि आप कुछ संजीदा समझ, और
अन्ध-भक्ति के वर्तमान दौर में एक वैज्ञानिक विश्व-दृश्टिकोण बनाना चाहते हैं तो कई ज़रूरी किताबें है
जिनके बारे में आपको जानने की ज़रूरत है और एक व्यापक विश्व-दृष्टि बनाने के लिये टीवी-सोशल मीडिया से हटकर अपने
आस-पास मौज़ूद मजदूर बस्तियों में जाकर वहाँ रहने वाले मज़दूरों की जिन्दगी से रूबरू
हो सकते हैं जो देश में उत्पादन होने वाली हर एक छोटी-बड़ी
वस्तु के उत्पादन में लगे हैं। नहीं तो सुना है कि कई लोग मस्क के ग्रोक-एआई से सवाल
पूछ कर ही सारी
सच्चाई जानने की बचकाना कोशिश कर रहे हैं और सम्भव है कि आने वाले समय में उसे एआई
क्रान्तिकारी घोषित कर दें।
इस किताब के कुछ पन्ने पढ़ने पर उपनिवेश दौर मे भारते के लोगों के शोषण की झलक देख सकते है-
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