Thursday, January 6, 2011

उपन्यास आदिविद्रोही (Spartacus) के कुछ उध्दरण

हावर्ड फास्ट के उपन्यास आदिविद्रोही (Spartacus) से कुछ उध्दरण:
"इन्सानों को जब तुमने जानवर बना दिया तब फिर वे फरिश्तों की तरह नहीं सोच सकते." - 91.2
"न्याय था मजबूत के हाथ का एक औजार जिसे वह जैसे चाहे इस्तेमाल करे और नैतिकता थी कमजोर के मन की एक भ्रांति, वैसी ही भ्रांति जैसे भगवान." - 153.2
"कुछ लोन उस बिंदु पर पहुँच जाते हैं जहाँ वे अपने आप से कहने लगते हैं -अगर मैं ये काम नहीं करता तो मेरे जिंदा रहनें की न तो कोई जरुरत है और न उसमें कोई तुक ही है- और जब बहुत सारे लोग उस बिंदु पर पहुँच जाते हैं तो धरती काँपने लगती है." - 174.2
"महान व्यक्ति हर रोज सवेरे अपनी महानता का चोगा पहन लेते हैं क्योंकि रात के वक्त तो महान व्यक्ति भी दूसरे साधारण जनों की तरह हो जाते हैं और उनमें से कुछ बहुत घ्रणित काम करते हैं और कुछ रोते हैं और कुछ मौत के डर से और अपने चारों तरफ के अंधेरे से भी ज्यादा घटाटोप अंधेरे के डर से दुबके-सिमटे रहते हैं." - 210.1
"ग़ुलाम तुम्हारा खाता है और मर जाता है मगर यह मज़दूर अपने आपको सोने मे बदल देते हैं. और फिर मुझे इसकी भी फ़िक्र नहीं करनी पड़ती कि उन्हे क्या खिलाऊँ और कहाँ रख्खूँ." - 321.4
"आशा किसके लिये? और कहाँ हैं आज वे आशाएँ. क्या तुम नहीं देखती कि दुनिया में कोई दूसरा तरीका इसके अलावा नहीं है और न कभी होगा - कि मजबूत कमजोर पर राज करे." 361.5
"कथाएँ लोककथाएँ बन गयीं और लोककथाओं नें प्रतीकों का रूप ले लिया मगर उत्पीड़कों के बिरुद्ध उत्पीड़ितों का युद्ध बराबर चलता रहा. . . और जब तक आदमी मेहनत करेगा और कुछ थोड़े से लोग उसकी मेहनत का फल उनसे छीन कर हड़प जायँगे, तब तक स्पार्टकस के नाम को लोग याद करेंगे - . . . " - 361.3
उपन्यास "आदिविद्रोही" (Spartacus) का ऐतिहासिक विश्लेषण: उपन्यास की कहानी ३०० इ.प़ू. में रोम के ग़ुलाम विद्रोह को लेकर लिखी गई है,  कि किस तरह एक ग़ुलाम, स्पार्टकस के नेतृत्व में गुलामों ने मिलकर रोम साम्राज्य के खिलाफ अपनी आज़ादी के लिए विद्रोह किया | इस बिद्रोह में ग़ुलामों की हार होती है, जिन्हें रोमन सेना कुचल देती है, और उन्हें सजा के प्रतीक के रूप में ज़िन्दा सलीबों पर लटका दिया जाता है | परन्तु, इसके बाद का इतिहास हर व्यक्ति को पता है, कि अंततः कई शताब्दीयों तक शंघर्ष के बाद दास व्यवस्था का अंत हो गया .... | {1}
अनेक अन्य जन-संघर्षों का इतिहास अलग-अलग रूपों, परिस्थितियों और समय के अनुरूप ऐसा ही था; जिसमें दबी कुचली जनता (शोषित वर्गों) नें संगठित होकर शोषण के शासनों को क्रांतिकारी तरीके से ध्वस्त करके नई समाजिक व्यवस्था का निर्माण किया, और मानव सभ्यता को नयी मंजिलों में पहुँचाया | {2}
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{1] मार्क्स और एंगेल्स के शब्दों में, "Hitherto, every form of society has been based . . . on the antagonism of oppressing and oppressed classes."
{2} इसी एतिहासिक भौतिकवादी संबंध में मार्क्स और एंगेल्स ने लिखा है "The [written] history of all hitherto existing society is the history of class struggles."

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