Wednesday, March 8, 2017

समाज के घटियापन और हर एक व्यक्ति के कर्म के बारे में मक्सिम गोर्की के कुछ व्यक्तिगत अनुभव

"अपने आप में छोटी विजय भी आदमी को अधिक प्रबल बनाती है।" - मक्सिम गोर्की
आज कल के नौजवान जो एक दायरे से आगे सोचने में अक्षम हैं क्योंकि वे जिस सामाजिक सांचे ढांचे में पल बढ़ रहे हैं वह उन्हें अतार्किक बनाकर मुनाफे के लिये बिना कोई सवाल उठाये काम में लगे रहने वाली एक मशीन बनाने की एक पूरी फैक्टरी है। कुछ ऐसे हालात का वर्णन गोर्की ने 20वीं सदी के रूस में अपने जीनव के बारे में किया है, गोर्की के ये अनुभव काम करने वाले हर एक नौजवान को जानने चाहिये । गोर्की की पुस्तक सृजन-प्रकिया और शिल्प के बारे में से,
ऐसा लगता था मानो मैं एक घने वन में रास्ता भूल गया हूँ जिसमें चारों ओर हवा से गिरे हुए बहुत से पेड़ हैं, घनी झाड़ियां और सड़े हुये पत्ते हैं जिनमें मैं घुटनों तक धंसा जा रहा हूँ।
बहुते से यूवकों के सामने एसे शब्द आते होंगे जो उसकी कल्पना में वैसी ही चालक शक्ति भर देतें होंगे, जैसे अनुकूल हवा जहाज़ के पाल में।
जीवन के घटियापन तथा निष्ठरता का भय मैंने बहुत अच्छी तरह अनुभव किया था, मैंने आत्महत्या की चेष्टा भी की जिसे मैं बहुत दिनों तक गहरी लज्जा तथा आत्मघृणा की भावना के बिना याद नहीं कर सकता था।
मुझे उस डर से छुटकारा तब मिला जब मैंने यह जान लिया कि लोग उतने बुरे नहीं होते जितने अज्ञान होते हैं, कि मैं उनसे या जीवन से नहीं, बल्कि अपनी सामाजिक तथा अन्य प्रकार की अज्ञानता, जीवन के समक्ष अपनी निराश्रयता तथा असहायता के कारण भयभीत हूँ। स्थिति वास्तव में यही थी। मैं समझता हूँ कि आपको इस बाते पे अच्छी तरह विचार करना चाहिये क्योंकि आपमें से कुछ लोग जो विवाप और शिकायत करते हैं उसका कारण इसके सिवा कुछ नहीं है कि उनमें जीवन के समक्ष निराश्रयता की भवना है, पुराना संसार मानव को बाहर तथा अन्दर से उत्पीड़ित करने के लिये जिन सब चीजों का प्रयोग करता है उनके विरुद्ध लड़ने की अपनी क्षमता में विश्वास का अभाव है।
"आपको अपने आपमे तथा अपनी शक्ति में विश्वास की भावना पैदा करनी चाहिये, और विश्वास बाधाओं को कुचलने तथा संकल्प को दृढ़ करने से प्राप्त होता है। आपको सीखना होगा कि कैसे अपने आपमें कखा अपने आसपास से अतीत की घटिया तथा धृणित विरासत को निकाल फेंकें।
"प्रत्येक वस्तु जो वास्तव में मूल्यवान है, स्थाई रूप से उपयोगी तथा सुन्दर है, जिसे मनुष्य ने विज्ञान, कला तथा प्रविधि के क्षेत्र में प्राप्त किया है, वह ऐसे व्यक्तियों की उपलब्धि है जो अवर्णनीय रूप से कठिन स्थितियों में, समाजकी अत्यंत अज्ञानता, चर्च के भयंकर द्वेषभाव, पूँजीपतियों को धनलिप्सा, तथा कला और विज्ञानों के संरक्षकों की सनकी माँगों के बातावरण में काम करते रहे थे।

"पुस्तकों से मनुष्यों के बारे में मुझे ऐसी बातों का ज्ञान हो सकता है जो मैंने पहले उसमें नहीं देखी थीं या नहीं जानता था। जीवन के बुरे पहलू को भी आदमी को उसी तरह जानना चाहिये जिस तरह अच्छे पहलू को। आदमी को अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिये। आदमी का अनुभव जितना विविध होगा, उसकी उड़ान उतनी उतनी ही ऊँची तथा दृष्टि क्षेत्र व्यापक होगा।

Friday, March 3, 2017

नौजवानों, लेखकों और कलाकारों के संदर्भ में - मक्सिम गोर्की के कुछ शब्द (Maxim Gorky Quotes)

कलाकार अपने देश तथा वर्ग का संवेदनशील ग्रहणकर्ता है – उसका कान, आँख तथा हृदय है। वह अपने युग की आवाज है। उसका कर्तव्य है कि जितना कुछ जान सकता हो जाने और अतीत को वह जितनी भलीभाँति जानेगा, वर्तमान को उतना ही अधिक अच्छी तरह समझेगा और उतनी ही गहराई और सूक्ष्मता से वह हमारे समय की सर्वव्यापी क्रान्तिकारिता तथा उसके कार्यभार की व्यापाकता को बोधगम्य कर सकेगा। उसके लिये जनता के इतीहास का ज्ञान आवश्यक है और इसी प्रकार सामाजिक तथा राजनीतिक चिन्तन का ज्ञान भी।
मेरे लिये मानव से परे विचारों का कोई अस्तित्व नहीं है। मेरे नज़दीक मानव तथा एकमात्र मानव ही सभी वस्तुओं और विचारों का निर्माता है। चमत्कार वही करता है और वही प्रकृति की सभी शक्तियों का भावी स्वामीं है। हमारे इस संसार में जो भी अति सुन्दर है उसका निर्माण मानव श्रम, और उसके कुशल हाथों ने किया है। हमारे सभी भाव और विचार श्रम की प्रक्रिया में उत्पन्न होते हैं और यह ऐसी बात है, जिसकी कला, विज्ञान तथा प्रविधि का इतिहास पुष्टि करता है। विचार तथ्य के पीछे चलता है। मैं मानुष्य को इसी लिये प्रणाम करता हूँ कि इस संसार में मुझे कोई ऐसी चीज़ नहीं दिखाई देती जो उसके विवेक, उसकी कल्पनाशक्ति, उसके अनुमान का साकार रूप न हो।
यदि पावन वस्तु की चर्चा आवश्यक ही है, तो वह है अपने आपसे मानुष्य का असंतोष, उसकी यह आकांक्षा कि वह जैसा है उससे बेहतर बने। जिन्दगी की सारी गन्दगी के प्रति, जिसे उसने स्वयं जन्म दिया है, उसकी घृणा को भी मैं पवित्र मानता हूँ। ईर्षा, धनलिप्सा, अपराध, रोग, युद्ध तथा संसार में लोगों के बीच शत्रुता का अंत करने की उसकी इच्छा और उसके श्रम कों पवित्र मानता हूँ।

पुस्तक भी जीवन और मानव के समान ही है। वह भी एक सजीव तथा बोलता तथ्य है, और वह उन सब वस्तुओं की तुलना में जिनकी सृष्टि मनुष्य ने की है, या कर रहा है, सबसे कम वस्तु है।

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