Friday, March 27, 2015

करोड़ों मज़दूरों की माँगों का दमन आने वाले समय की एक छोटी सी तस्वीर दिखा रहा है

दिल्ली में ठेका मज़दूरों के प्रदर्शन पर किया गया लाड़ी-चार्ज आने वाले समय की एक छोटी सी तस्वीर दिखा रहा है। और यह सिर्फ एक घटना नहीं है, इसी तरह के मज़दूर-छात्र आन्दोलनों का दमन हरियाड़ा से लेकर हिमांचल और बंगाल तक पिछले कुछ सालों से लगातार हो रहा है।
आज भारत की पिछड़ा पूँजीवादी व्यवस्था देश के मेहनत करने वाले करोड़ों लेगों को सम्माननीय रोजगर देने में असमर्थ है। और देश की 93 फीसदी आबादी अनियमित रोजगार में ठेकेदारों की मनमर्जी के मुताबिक किसी श्रम अधिकार के बिना काम कर रही है।
वोट बैंक की राजनीति में हर समस्या का समाधान करने के सपने दिखा कर कुछ लोग सत्ता हथिया रहे हैं। जनता का बड़ा हिस्सा जो राजनीति के प्रति अभी जागरुक नहीं है, और अपनी परिस्थितियों में बदहाल है वह कुछ बदलाव की उम्मीद में कभी एक पार्टी की ओर तो कभी किसी दूसरा पार्टी की ओर एक उम्मीद में झुक रहा है। लेकिन कुछ ही दिनों में राजनीतिक के रंगे शियारों की असलियत लोगों की सामने खुल कर सामने आ रही है।
यदि आप को देश की वास्तविकता का अन्दाज़ नहीं है और टीवी देख-देख कर आप सच्चाई से कट चुके हैं तो नीचे के लेख के कुछ आंकड़ों पर गौर करें सारी बात स्पष्ट हो जायेगी - http://sparkofchange.blogspot.in/2015/03/50.html
खुली मुनाफाख़ोरी और मज़दूरों के खुले शोषण तथा व्यवस्था के परजीवी चरित्र का अन्दाज इस बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ करोड़पतियों की संख्या पूरी दुनिया के किसी भी देश की तुलना में तेज गति से बढ़ रही है और काम करने वाले लोगों के हालातों में कोई सुधार नज़र नहीं आ रहा, जबकि ठेकाकरण और निजीकरण के कारण मज़दूरों से उनके रहे-सहे अधिकार भी छीने जा रहे हैं।
आने वाले समय में बेरोज़गारी की स्थिति और भी बदतर होने वाली है और पढ़े-लिखे प्रोफेसनल भी ठेका मज़दूरों की कतारों में शामिल होने लगे हैं। जब देश की यह करोड़ों बेरोज़गार और ठेके पर काम करने वाली बदहाल मज़दूर आबादी अपनी माँगों के लिये सड़कों पर निकलेगी तो जनता के समर्थन से सत्ता में पहुँचे नेता, जो जनता को भूल कर "बनियागीरी" के नाम पर कुछ लोगों के हितों का पोषण करने में तल्लीन हैं, वे बेशर्मी से लाठी-डण्डों और हर तरह के बल प्रयोग से माँग करने वाली जनता का दमन करनें में कोई संकोच नहीं करते हैं।लेकिन यदि देश की जनता अपने अधिकारों के बारे में जाग़रूक होकर संगठित हो और इन तरह की फासीवादी तानाशाही और दमन के खिलाफ आगे आएगी तो यह सम्भव नहीं है कि जनता के दम पर चुनी हुई सरकारों में बैठे छुटभैया नेता कुछ लोगों के हितों की पूर्ती के लिये जनता का ही दमन करने पर उतारु हो जायें। जनतन्त्र का अर्थ समझने वाले हर नागरिक को सरकारों और पूरे तन्त्र को यह याद दिलाने की जरूरत है कि यह जनतन्त्र है, तानाशाही नहीं है, और हर एक को आलोचना करने, अपने जनवादी अधिकारों की माँगों के लिये प्रदर्शन करने और अपनी आजीविका के लिये संगठित होकर संघर्ष करने का पूरा अधिकार है, जिसे दबाया नहीं जा सकता।

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