Monday, November 28, 2011

भारत में घरेलू काम में लगे मज़दूरों के निरंकुश शोषण का एक दृश्य

गुड़गाँव में, पिछले महीने एक घर में किराये पर रहने वाले मध्यवर्ग के कुछ लोगों के दो लैपटॉपों (कम्प्यूटरों) की चोरी हो जाने के शक में, घर के मालिक ने उसी दिन घर पर बिजली का काम करने आये एक मज़दूर को बुलाया और उसपर चोरी का इल्ज़ाम लगाकर खुद को सभी क़ानूनों से ऊपर समझते हुये उसके साथ मार-पीट की और बाद में पुलिस को बुलाकर उस मज़दूर को थाने ले गया। यह मज़दूर बिहार से गुड़गाँव में आकर पिछले 15 वर्षों से घरों में खाना बनानें के साथ ही बिजली के उपकरणों को ठीक करने का काम कर रहा है, जिसके कारण उस मज़दूर ने थानें में अपने कुछ सम्पर्कों, जिनके यहाँ वह काम करता था, उन्हें बुलाकर बातचीत करवाई, और अंत में उसे छोड़ दिया गया।
एक सामान्य मध्यवर्ग के व्यक्ति द्वारा सिर्फ इस लिये एक मज़दूर पर शक करना क्योंकि वो गरीब था, और मार-पीट करना वर्तमान समय में समाज के मध्य वर्ग में मौजूद गैर-जनवादी और फ़ासीवादी प्रवृत्तियों का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है, जो संविधान और कानून को कोई महत्व नहीं देते, क्योंकि वे एक सम्पत्ति के मालिक हैं, और वे जानते हैं कि पूरी पूँजीवादी व्यवस्था पूँजी के इशारों पर नाचती है।
यह घटना असंगठित क्षेत्र में घरेलू काम करने वाले अनेक मज़दूरों की वास्तविक समाजिक स्थिति को सबके सामने लाकर खड़ा कर देती है। यह किसी एक व्यक्ति के साथ घटित कोई घटना नहीं है, बल्कि घरेलू काम करके आपनी आजीविका कमाने के लिये मजबूर अनेक प्रवासी मज़दूरों के साथ इस प्रकार की घटनायें हर रोज़ होतीं हैं।
वर्तमान समय में घरेलू काम में लगे मज़दूरों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जो देश के अलग-अलग हिस्सों से पूँजी की मार से उजड़कर महानगरों, जैसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली, गुड़गाँव, नोयडा आदि.), बंगलौर, हैदराबाद, मुंबई, में आकर काम की तलाश करते हैं। यह मज़दूर घरों मे खाना बनाना, सफाई करना, माली का काम करना, घरों में बिजली और प्लम्बर का काम करना, घरों के सुरक्षा गार्ड, गाड़ी के निजी ड्राइवर, बच्चों की देख-रेख करने, जैसे अनेक काम करते हैं, और किसी प्रकार मुश्किल से अपनी और आपने परिवार की आजीविका कमा पाते हैं। इन सभी कामों में ज्यादातर बच्चे भी अपने माता या पिता के काम में हाथ बंटाते हैं। कई बार अवैध व्यापार के तहत शहर में लाकर बेचे गये अनेक बच्चे भी इस काम में बंधुआ मज़दूर की तरह काम कर रहे हैं। (श्रोत, "भारत में बाल तस्करी:: एक चिंता का विषय"- डा. इंतेज़ार ख़ान, डिपार्टमेन्ट आँफ सोसल वर्क, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली)
इस प्रकार के सभी कार्यों में लगे मज़दूरों के लिये स्वतंत्रता, समानता, शिक्षा, भ्रातत्व और एकता जैसे कल्पना में गढ़े गये पूँजीवादी जनवाद के नारों का कोई महत्व नहीं है, और आर्थिक असमानता की बेड़ियों में जकड़े हुये इनकी हालत एक ग़ुलाम के समान होकर रह गई है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह एक घटना है, जो एक नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों घरेलू काम में या किसी और काम में लगे हुये गरीबों के जीवन की नंगी सच्चाई को विकाश की राह पर दौड़ रहे देश के प्रबुद्ध नागरिकों के सामने लाकर खड़ा कर देती है, और चीख-चीख कर कहती प्रतीत होती है कि पूँजीवादी जनतंत्र के नाम पर आर्थिक असमानता, बेरोज़गारी और ठेकाकरण के साथ कितने माध्यमों से उनकी स्वतंत्रता का गला घोंटा जा रहा है ।
देश के कई राज्यों में लगातार कम हो रहे रोज़गार के अवसरों के चलते उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों से अनेक गरीब मज़दूर और किसान परिवार उजड़कर रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर आ रहे हैं। इन महानगरों में यह सभी मज़दूर काम की तलाश करते हैं, और कुछ परिवारों की महिलायें और बच्चे फ़ैक्टरियों में काम न मिलने के कारण या कुछ फ़ैक्टरियों में काम की बदतर परिस्थितियों में 12 से 16 घण्टे काम न कर पाने के कारण घरेलू काम करके पैसे कमाते हैं । इन महानगरों में मध्य-वर्ग और उच्च-मध्य वर्ग का जीवन यापन करने वाले आईटी और कम्प्यूटर क्षेत्र के इन्जीनियरों, डाँक्टरों, दुकानदारों आदि की संख्या में पिछले 20 से 30 सालों में तेजी से वृद्धि हुई है, जो देशी और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करते हैं और भारत की मज़दूर आबादी की औसत आमदनी के काफी ज्यादा कमा लेते है। समाज के इस नये मध्य वर्ग और मज़दूरों के बीच का अन्तर लगातार तेजी से बढ़ रहा है, और यह वर्ग भी सरकारी अफसरों, छोटे-बड़े उद्योगपतियों की तरह अपने घरेलू काम करवाने के लिये मज़दूरों की तलाश करता है।
ऐसी पर्स्थितियों मे लगातार बढ़ रही मंहगाई और बेरोज़गारी के कारण एक गरीब मज़दूर अकेले अपनी कमाई से पूरे परिवार की आवश्यकतायें पूरी नही कर सकता जिसका नतीजा यह होता है कि कुछ गरीब परिवारों में पुरुष फैक्टरीयों में काम करते हैं, और महिलायें एवं बच्चे घरों में खाना बनाकर, सफाई करने, बच्चों की देखभाल करने जैसे काम करके पैसे कमाते हैं। इसके साथ ही अब कई पुरूष भी फैक्टरीयों में काम न मिलने के कारण घरों में खाना बनानें और सफाई करने जैसे कामों में लगे हुये हैं। घरेलू काम करने वाले इन मज़दूरों की आमदनी का कोई स्थाई ज़रिया नहीं होता, और न ही कोई वेतन भुगतान का पंजीकरण होता है, इनका वेतन और काम पूरी तरह से काम करवाने वाले परिवार की इच्छा पर निर्भर करता है, जिसके कारण यह लगातार एक जगह से दूसरी जगह काम बदलते रहते हैं। [पूरा आगे बढ़ा कर देखें....]
सोशल एलर्ट द्वारा वर्ष 2008 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 10 करोड़ महिलायें, बच्चे और पुरुष घरेलू काम करके अपनी आजीविका कमाते हैं (मेंनस्ट्रीमिंग डोमेस्टिक वर्कर्स, द हिन्दू, 17 मार्च 2011) । घरेलू काम करने बाली यह आबादी असंगठित मज़दूरों की उस आबादी का एक हिस्सा है जो  भारत के कुल मज़दूर आवादी का 93 प्रतिशत है। और एक सर्वेक्षण के अनुसार घरेलू काम में लगी यह मज़दूर आवादी साफ्टवेयर के क्षेत्र मे काम करने वाले लोगों की संख्या से 50 गुना अधिक है (डोमेस्टिक वर्कर्स इन इण्डिया "वान्ट ए वेटर लाफ, टू", seattletimes.nwsource.com)। भारत में काम करने वाले कुल बच्चों में से 20 फीसदी घरेलू काम करते हैं ("द केस इज नाँट क्लोज्ड" , मेनस्ट्रीम, 18 जून  2011) और पूरे देश में घरेलू काम करने वाले 50 प्रतिशत मज़दूरों की एक महीने की कमाई 1000 से 1500 रुपये होती है, जिनमें से ज्यादातर को काम के दौरान कोई भी छुट्टी नहीं दी जाती है (रिपोर्ट-"चाइल्ड डोमेस्टिक वर्क इन इण्डिया", सेव द चिल्ड्रन)। घरेलू काम करने वाले इन मज़दूरों में से 20 प्रतिशत से अधिक 5 से 14 साल से कम उम्र के बच्चे हैं, जिन्हे चाइल्ड लेबर एक्ट 2006 के अनुसार मज़दूरी करने का अधिकार नहीं है, और जिन्हे संविधान मुफ्त शिक्षा देने की बात करता है ("डोमेस्टिक वर्कर्स इन इण्डिया नो बेटर देन स्लेव्स" by कल्पना शर्मा, 17 फरवरी 2009) । एक अन्य आँकड़े के अनुसार असंगठित मज़दूरों का यह क्षेत्र खेती और निर्माण के बाद सबसे बड़े व्यवसाय के रूप में सामने आया है और साल 2000 से लेकर 2010 तक इसमें 222 फीसदी की वृद्धि हुई है ("मिनि. वेज़ फार डोमेस्टिक वर्कर्स?- सुबोध घिल्डियाल ", टाइम्स आँफ इण्डिया, 19 मई 2010)
गांवों और छोटे शहरों से उजड़कर महानगरों में काम ढूंढ़ने आ रहे इन गरीब मज़दूरों की बेरोजगारी का फायदा उठाने के लिये इन महानगरों में कई निजी ठेका कंपनियाँ भी पैदा हो चुकी हैं, जो छोटे शहरों से आने वाले बेरोजगार लोगों की मज़बूरी का फायदा उठातीं हैं । ये कंपनियाँ घरेलू काम ढूंढ़ने वाले पुरुष और महिलाओं का अपने यहाँ पंजीकरण करवा लेतीं हैं, और पर्चों एवं विज्ञापनों आदि के माध्यम से काम करवाने वालों को ढूंढ़ रहे परिवारों को ठेके पर घरेलू मज़दूर मुहैया करवातीं हैं। और इसके बदले ये खुद बीच में रहकर दलालों की भूमिका में मुनाफा कमाती हैं ।
ठेका कंपनियों के माध्यम से, या स्वयं काम ढूंढ़ने वाले ये सभी मज़दूर आर्थिक रूप से पूरी तरह से अपने काम पर आश्रित होने के कारण मालिक की दया एवं शोषण को, और ठेका कंपनी के दबाब को बर्दाश्त करने पर मज़बूर हैं। इन सभी मज़दूरों के लिये भारतीय संविधान में लिखित कोई भी श्रम-कानून लागू नहीं होता और न ही कोई आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा इन्हें मिलती है। देश की इस बदहाल आवादी की यथास्थिति का अंदाज़ घरेलू मज़दूरों के ठेके का काम करने बली कंपनी के एक शर्मनाक विज्ञापन को देखकर लगाया जा सकता है, जो लिखता है, "भारत में घरेलू काम की व्यवसाय रोजगार का एक महात्वपूर्ण क्षेत्र है। मज़दूर सस्ते में आसानी से उपलब्ध है। विदेशी देशों के उच्च वर्ग की तरह भारत में मध्यवर्ग के परिवार भी घरेलू काम करवाने के लिये मज़दूरों को ढूंढ़ते हैं, कम-से-कम धुलाई और सफाई के लिये। आज 22 लाख से ज्यादा मज़दूर घरेलू कामों में लगे हुये हैं, और यह व्यवसाय पूर्ण रूप से असंगठित क्षेत्र है।. . . यह ठेका कंपनियाँ महानगरों में मौजूद हैं, जहाँ घरेलू मज़दूरों की माँग तेजी से बढ़ रही है।" (श्रोत: डोमेस्टिक हेल्प फाँर एजेन्सीज) ।
आज एक महात्वपूर्ण कार्य हर सोचने समझने वाले व्यक्ति के सामने है कि इन गरीब मज़दूरों को इनके अधिकारों के बारे में शिक्षित कैसे किया जाये, इन्हें नागरिकों के जनवादी अधिकारों के बारे में जानकारी कैसे दी जाए? आज हर मज़दूर और हर प्रगतिशील नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वो मज़दूरों के रुप में बन रहे जनता के इस समुद्र की धारा को उनके अधकारों के लिये शिक्षित करते हुये एक निर्धारित दिशा में मोड़ने के लिये आगे आये। उन्हें अपने शोषण के विरुद्ध जागरुक करने के लिये हर क्षेत्र के व्यक्ति को कानों और नेत्रों से अपंग सरकार और वर्तमान समय में जन प्रतिनिधि होने का दाबा करने वेले सभी लोगो का ध्यान जनता की ऐसी अनेक मूल जमीनी समस्याओं की ओर लाने का प्रयास करे ।

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