Monday, August 15, 2011

"आग्नेय वर्ष" के कुछ उद्धरण (by फेदिन)

फेदिन के उपन्यास "आग्नेय वर्ष" के कुछ उद्धरण [आग्नेय वर्ष, 1947-48 में प्रकाशित, लोखक- फेदिन]
 

"हम हमेशा एक दूसरे को पढ़कर सुनाया करेंगे। मेरा मतलब हमारे मनपसन्द लेखकों की रचनाओं से है। अगर हम कभी अभागे लोगों के बारे में पढ़ेंगे, तो अपनें को और भी सौभाग्यशाली महसूस करेंगे, क्योंकि उस समय मन ही मन सोचेंगे: कितने सौभाग्य की बात है कि हम इनकी तरह अभागे, दुखी नहीं हैं!"... "नहीं", किरील नें जवाब दिया, "हम पढ़ेंगे और सोचेंगे कि इन अभागे लोगों को भी सौभाग्यसी कैसे बनाया जाये। हमारे लिये सबसे अधिक हर्ष और सौभाग्य की बात यही होगी" (163.4, 163.5)
"हताषा और विषाद के क्षणों में मनुष्य के मस्तिष्क में ऐसे दुस्साहसिक और उतावली-भरे जाने कितने विचार उठते होंगे लेकिन इस तरह के बहुत कम विचार ही मस्तिष्क की सीमायें लाँघकर व्यवहार में साकार बन पाते हैं, क्योंकि मस्तिष्क में वे वैसे ही चैन शान्ति से रहते हैं, जैसे कि नेक इरादे मनुष्य के ह्रदय में उस पर किसी भी प्रकार बोझ बने बिना।" (165.4)
"जब नगर में बाढ़ का खतरा हो तो सभी नगरवासी बाँध बनाने आते हैं, बिना किसी शर्त के । और जो आये, दुबककर बैठा रहे, वह भगोड़ा होता है।" (247.16)
"क्या हम भविष्य में मानव सम्बन्धों को बदलना चाहते हैं ज़रूर बदलना चाहते हैं। तो मैं सोचता हूँ कि हमें अपने वर्तमान जीवन में इन परिवर्तनों के लक्षण ढूँढ़ना चाहिये, ताकि इनमें से कुछ अभी से हमारे जीवन का अंग हो जायें।"... "हमें अपने विचारों को जीते-जाते लोगों में, उनके आपसी सम्बन्धों में उतारना चाहिये। अपने विचारों को व्यवहारिक रूप देना चाहिये। नहीं तो हम अपने सपनों में ही खो जाएँगे.... और हम अपने सपने की ही पूजा करने में इतने आदी हो जाएँगे कि लोगों को भूल ही जाएँगे। इसलिये हमें आज ही इस सपने को साकार करना चाहिए..." (431-432)
"कोई भी उड़ान पृथ्वी धरती के बिना नहीं हो सकती। उड़ने के लिये ठोस ज़मीन जाहिये.... हम भविष्य की उड़ान का मैदान बना रहे हैं। यह बड़ा बड़ा मुश्किल और लम्बा काम है। शायद सभी कामों से मुश्किल काम है यह। इसके लिये हमे सुख-सुविधाओं को भूलना होगा। ज़रूरी हुआ तो हम अपने हथों से ज़मीन खोदेंगे, अपने नाखूनों से इसे ठीक करेंगे, नंगे पैरों से इसे कूटेंगे। और तब तक पीछे नहीं हटेंगे, जब तक कि हमारी उड़ान का मैदान तैयार नहीं हो जाता। हमारे पास आराम करने का समय नहीं है। कभी-कभी तो मुस्कुराने भर की फ़ुर्सत नहीं मिलती। हमें जल्दी करनी चाहीये।....... मैं तब तक ज़मीन कूटता रहूँगा जब तक की बह उड़ान की दौड़ भरने के लिये तैयार नहीं हो जायेगी। ताकि इतनी ऊँची उड़ान भरी जा सके, जिसकी लोगों ने कल्पना भी नहीं की है। यह ऊँचाई सदा मेरी आँखों के सामने रहती है, हर पल .. मैं लोगों को, उनके साथ स्वयं को भी बिल्कुल दूसरा, नया मनुष्य बना देखता हूँ.... "(462.14)
क्या आज़ भी हम ऐसा ही सोचते हैं और इसके लिये कुछ करते है......

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