Sunday, August 28, 2011

नैतिकता , संस्कृति, शिक्षा, एकता, अपराध :[बाल्ज़ाक के उपन्यास किसान (Balzac) से..]

1799-1850
बाल्ज़ाक (Balzac) के उपन्यास किसान (Sons of the Soil) के कुछ उद्धरण

नैतिकता की धारणा पर बाल्ज़ाक,
नैतिकता जिसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, एक निश्चित स्तर की योग्यता पर ही आरम्भ होती है -ठीक वैसे ही, जैसे उच्चतर धरातल पर हम देखते हैं कि आत्मा में कोमल भाव तभी पनपते हैं जब जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हो। (पृ-73.3)

कुलीनों की संस्कृति पर बाल्ज़ाक की नजर,
किसान और मेहनतकश का हास्य जरा बारीक होता है। वह अपने मन की बात बोल देता है और जानबूझ कर उसे भोंड़े ढंग से अभिव्यक्त करता है। यही चीज हम पेरिस के बैठककक्षों में पाते हैं। वहाँ इस चित्रात्मक फूहड़ता का स्थान महीन वाक्विदग्धता ले लेती है बस और कोई फर्क नहीं होता… (पृ-76.2)

एक किसान अपने नाती से शिक्षा पर,

मैं उसे ईश्वर से भय खाने के लिए नहीं कहता, बल्कि आदमियों से डरने की सलाह देता हूँ। ईश्वर भला है; जैसा कि आप लोग कहते हैं, उसने हम गरीबों को स्वर्ग का वादा किया है, क्योंकि अमीर लोग धरती को तो अपने लिए ही रखते हैं।... कोई भी चीज चुराओ नहीं, ऐसा करो  कि लोग खुद ही उसे तुम्हें दे दें। ... इंसाफ की तलवार -इसी से तुम्हें डरना है; यह अमीरों को चैन से सोने देती है और गरीबों को जगाये रहती है। पढ़ना सीखो । शिक्षा तुम्हे कानून के पर्दे में पैसे हथियाना सिखायेगी,...। असल चीज यह है कि अमीरों के साथ लगे रहो, और उनकी मेजों से गिरने वाले टुकड़े उठाते रहो...(पृ-99.4)

एक किसान एक बुर्जुआ सूदखोर से,
पूरी दुनियाँ में ऐसा ही है। अगर एक अमीरी में लेट-पोट हो रहा है तो सौ कीचड़ में पड़े हैं।.. इसका जबाब ईश्वर और सूदखोरों से माँगिये। ... हममें से जितने लोग ऊपर उठ पाने में कामयाब हो पाते हैं उनकी तादात उनके आगे कुछ नहीं है जिन्हें आप नीचे धकेल देते हैं।... आप हमारे स्वामी बने रहना चाहते हैं और हम हमेशा ही दुश्मन रहेंगे...। आप के पास सब कुछ है, हमारे पास कुछ नहीं; आपको उम्मीद नहीं करनी चाहिये कि हम कभी दोस्त बनेंगे। (पृ-101.1)
कानून की सख्ती उत्पीड़न की पराकाष्ठा होती है..(पृ-104.2)

अपराधियो की एकता और वर्ग हित,
हितों की ऐसी एकता, जो अन्त: करण के धवल वस्त्र पर पड़े दाग धब्बों की पारस्परिक जानकारी पर आधारित होती है, इस दुनियाँ के उन बन्धनो मे से एक है जो सबसे कम पहचाने जाते हैं और जिन्हें खोलना सबसे कठिन होता है। (पृ-114.3)

भ्रष्टाचार और अपराध का श्रोत,
गुप्त दुष्टताओं और छुपी हुई नीचताओं का मुख्य कारण शायद खुशियों का अधूरा रह जाना ही होता है। इंसान लगातार ऐसी बदहाली को सहन कर सकता है जिससे निकलने की उसे कोई आशा न दिखाई देती हो, लेकिन शुख और दुख का धूप-छाँव का खेल उसके लिये असहनीय हो जाता है। जैसे शरीर को रोग लगते ही दिमाग को ईर्ष्या का कोढ़ हो जाता है। क्षुद्र मस्तिष्कों में यह कोढ़ एक नीचतापूर्ण और क्रूर, कभू शान्त न होने बाली उद्धत तृष्णा को रूप धारण करता है, जबकि परिष्कृत मस्तिष्कों में यह समाजविरोधी सिद्धान्तों को जन्म देता है जो व्यक्ति के लिये अपने से श्रेष्ठ व्यक्तियों को पार करके ऊपर चढ़ने की सीढ़ी का काम कमा करते हैं। (पृ-125.2)
[जन क्रांतियों के सबसे बड़े दुश्मन वे होते हैं जो खुद उनके बीच से पैदा होते हैं। (पृ-245)]

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