Thursday, April 7, 2011

A Sketch of the Future Drawn by Chernyshevsky

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निकोलाई चर्नेविश्की के कुछ शब्दों में (From Novel "What is to be Done" by Nikolai Chernyshevsky):

"कितना विचित्र यह नहीं कि कोइ व्यक्ति कहे, "मैं प्रसन्न हूँ।", और मानववादी तात्पर्य होता है, "मैं सभी को प्रसन्न होते देखना चाहता हूँ।" और दोनों बाते एक ही हैं।" (98.2)
"जीवन, प्रकृति और सामान्य विवेक एक दिशा में खींचते हैं, और पुस्तकें दूसरी दिशा में |" (109)
जहाँ तक इस बात का सवाल है कि लोगों की मूर्खता नई व्यवस्था की स्थापना में बाधक है, मै मानता हूँ कि वह बाधा है, लेकिन . . . . जैसे ही वह इसमें अपना कुछ लाभ देखेंगे जो वे पहले नहीं देख पाए तो तत्काल अक्लमन्द हो जाएँगे । उन्हे अक्ल पाने का अभी अवसर ही कहाँ मिला, लेकिन अवसर मिलते ही वे इसका पूरा-पूरा लाभ उठानें में देर नहीं लगाएँगे।” (114-115)
तरीकों का चुनाव परिस्थितियों के अनुसार किया जा सकता है, चरित्र के अनुसार नहीं ।” (119)
गौण व्यक्तियों अथवा लक्ष्यों के पीछे अपना समय बर्बाद मत करो, बल्कि मूलभूत की ओर, उसके निर्धारक तत्व कि ओर ध्यान दो, इससे गौण कार्य और लोग भी बदलेंगे हस्तक्षेप करके या न करके |” (285.1)
कोइ ऐसा शिखर नही कि जिस पर पहुँचा न जा सके; जिस पर केवल श्रेष्ठ ही आसीन हो सकता हो । मेरे अभागे मित्रों अपने पंक से उबरो, दिन के उजाले में आओ, प्राप्त स्वतंत्रता से खुश होओ, यह सहज है, अत्यन्त सम्मोहक है, बस कोशिस करके देखने की जरूरत है । देखो और सोचो, और ऐसी पुस्तकें पढ़ो जो शुध्द आनन्द, सद्गुण और सुख की चर्चा करती हैं ।” (314.2)
झोपड़ियों को ही देखनें वाला व्यक्ति, सामान्य भवन का चित्र देखकर उसे प्रसाद ही समझ बैठता है ।” (314.2)
हम सब लोगों का यही तो स्वभाव है कि दूसरो को भी अपने ही मानक से मापते हैं ।” (318.4)
किसी पुस्तक के किसी पात्र के बारे में कहा जाता है, "झूठ ने कभी उसके होठो को स्पर्श नहीं किया।", अथवा, "उसके ह्रदय में कोइ छल-कपट नहीं था।" पाठक सोचेगा, "कितना चकित कर देने वाला सद्गुण।", लेखक सोचेगा, "यह है नायक, जो सभी को चकित कर देगा।" पहला लिखते समय अंधा था दूसरा अब पढ़ते समय ।” (353.1)
हर किसी का स्वभाव अपना-अपना होता है, जबकि उत्तेजनशील व्यक्ति सावधानी से खीझता है, शान्त स्वभाव आकस्मिक उताबलेपन से बिद्रोह कर उठता है।” (400.1)
किसी खास स्वभाव वाले लोग किसी खास बात के लिए उस समय तक परवाह नहीं करते जब तक कि इससे उनके सामान्य जीवन पर प्रभाव नहीं पड़ता, जो कि उनके विचार में कहीं अधिक महात्वपूर्ण है।” (401.3)
मानव जाति अगर अपने विचार उन्मुक्त कर दे तो वह निश्चय ही दस गुना तेजी के साथ प्रगति करेगी।” (420.7)

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